Re: डार्क सेंट की पाठशाला
सबसे बड़ी कला
अगर कोई प्रतिभावान हैं और उसे वे सभी कलाएं आती हैं, जो एक प्रतिभावान के पास होनी चाहिए; तो उस प्रतिभावान को कभी अपनी प्रतिभा पर घमंड करना या इतराना नहीं चाहिए, वरना उसकी प्रतिभा के कोई मायने नहीं होते। एक युवा ब्रह्मचारी था। वह बहुत ही प्रतिभावान था। उसने मन लगाकर शास्त्रों का अध्ययन किया था। वह प्रसिद्धि पाने के लिए नई-नई कलाएं सीखता रहता था। विभिन्न कलाएं सीखने के लिए वह अनेक देशों की यात्रा भी करता था। एक व्यक्ति को उसने बाण बनाते देखा, तो उससे बाण बनाने की कला सीख ली। किसी को मूर्ति बनाते देखा, तो उससे मूर्ति बनाने की कला सीख ली। इसी तरह कहीं से उसने सुंदर नक्काशी करने की कला को भी सीख लिया। वह लगभग पंद्रह-बीस देशों में गया और वहां से कुछ न कुछ सीख कर लौटा। इस बार जब वह अपने देश लौटा, तो अभिमान से भरा हुआ था। अहंकारवश वह सबका मजाक उड़ाते हुए कहता, भला पृथ्वी पर है कोई मुझ जैसा अनोखा कलाविद्। मेरे जैसा महान कलाकार भला कहां मिलेगा। बुद्ध को उस युवा ब्रह्मचारी के बारे में पता चला, तो वह उसका अहंकार तोड़ने के लिए एक वृद्ध ब्राह्मण का रूप धारण कर उसके पास आए और बोले - युवक, मैं अपने आप को जानने की कला जानता हूं। क्या तुम्हें यह कला भी आती है? वृद्ध ब्राह्मण का रूप धरे बुद्ध को युवक नहीं पहचान पाया और बोला - बाबा, भला अपने आप को जानना भी कोई कला है? इस पर बुद्ध बोले - जो बाण बना लेता है, मूर्ति बना लेता है, सुंदर नक्काशी कर लेता है अथवा घर बना लेता है वह तो मात्र कलाकार होता है। यह काम तो कोई भी सीख सकता है। पर इस जीवन में महान कलाकार वह होता है, जो अपने शरीर और मन को नियंत्रित करना सीख जाता है। अब बताओ, ये कलाएं सीखना ज्यादा बड़ी बात है या अपने जीवन को महान बनाना। बुद्ध की बातों का अर्थ समझकर युवक का अभिमान चूर-चूर हो गया और वह उनके चरणों में गिर पड़ा। वह उस दिन से उनका शिष्य बन गया।
__________________
दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
|