Re: डार्क सेंट की पाठशाला
खुद बनाएं अपना भाग्य
स्वामी विवेकानंद ने एक बार कुछ युवाओं से कहा, 'तुम अपनी गलतियों के लिए दूसरों को दोष क्यों देते हो? असल में तो तुम जो बोते हो वही काटते हो। दूसरों पर दोषारोपण हमें दुर्बल बनाता है। अपनी दुर्बलताओं के लिए किसी और को दोष मत दो। सारी जिम्मेदारी अपने कंधे पर लो। जानो कि अपने भाग्य के निर्माता तुम स्वयं हो। कोई भी देवता आकर हमारा बोझ उठाने वाला नहीं है।' जब हम यह समझ लेते हैं कि किसी कार्य के लिए स्वयं हम ही जिम्मेदार हैं, तब हम अपने श्रेष्ठतम रूप में सामने आते हैं। सारी शक्तियां और सफलताएं असल में इंसान के निकट ही होती हैं। ऐन्द्रिक सुखों एवं भोगों की इस दौड़ का कोई अंत नहीं होता, लेकिन जैसे बुरे विचार और बुरे कर्म हमेशा इंसान को नष्ट करने के लिए आतुर रहते हैं, वैसे ही अच्छे विचार और कर्म भी हजार देवदूतों के समान उसकी रक्षा के लिए सदैव तैयार होते हैं। इसलिए कोल्हू के बैल की तरह कुछ पाए बिना सिर्फ एक ही गोल घेरे में भटकने से कोई लाभ नहीं है। इंसान को स्वयं ही इस चक्र से बाहर निकलना होगा। जीवन के इस संग्राम में धूल -मिट्टी उड़ना स्वाभाविक है। जो इस धूल को सहन नहीं कर सकता, वह आगे कैसे बढ़ सकेगा? ये विफलताएं ही सफलता के मार्ग की अनिवार्य सीढ़ियां हैं। यदि कोई व्यक्ति आदर्श के साथ एक हजार गलतियां करता है, तो बिना आदर्श के वह पचास हजार गलतियां करेगा। इसलिए हर व्यक्ति के जीवन में अपना एक आदर्श होना आवश्यक है। इसे कभी नहीं छोड़ना चाहिए। इस पर डटे रहने से हम कई जगह फिसलने से बच जाते हैं। व्यक्ति का चरित्र और कुछ नहीं, उसी की आदतों और वृत्तियों का ही सार है। हमारी आदतें और व्यवहार ही हमारे चरित्र का स्वरूप निश्चित करती हैं। चित्त की विशेष अवस्था उसकी श्रेष्ठता और निकृष्टता के अनुरूप ही हमारे चरित्र की सफलता और निर्बलता सुनिश्चित होती है। अच्छे चिंतन और आचरण के रूप में जिस चरित्र गठन होता है, वही बाद में साधना का रूप ले लेता है।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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