Re: डार्क सेंट की पाठशाला
संत के सवाल
यह मनुष्य का स्वभाव है कि वह अपने हित के लिए अक्सर प्रकृति से भी आमना- सामना कर बैठता है, जो बाद में उसी के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है। इसलिए मनुष्य को प्रकृति का उतना ही दोहन करना चाहिए जितनी उसे जरूरत है। आज मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए निरन्तर पेड़ों की कटाई कर रहा है, जो आने वाले समय के लिए उचित नहीं है। एक गांव में एक संत सदानंद का प्रवचन चल रहा था। प्रवचन के बीच में सवाल-जवाब का दौर चलता, तो कभी हंसी-मजाक का भी। एक छोटे बच्चे को संत ने बुलाया । खाने को उसे लड्डू भी दिया। फिर पूजा की थाली में रखा दीपक जलाया और लोगों को सुनाते हुए बच्चे से ठिठोली के अंदाज में पूछा - बताओ बेटा। दीपक में यह ज्योति कहां से आई? सभा में उपस्थित लोग प्रवचन का आनंद ले रहे थे। सभी इस सवाल पर विचारमग्न हो गए कि दीपक में प्रकाश आया कहां से? लेकिन इस सवाल का जवाब वह बच्चा भला कैसे दे पाएगा? तभी वह बच्चा उठा और उसने फूंक मारकर दीपक को बुझा दिया। फिर उसने संत से पूछा - महाराज, अब आप बताइए, दीपक का प्रकाश कहां गया? संत को इस प्रश्न की आशा नहीं थी। वह सोच में पड़ गए। सारी सभा में सन्नाटा छा गया। तभी संत ने उस बच्चे को गले लगाते हुए कहा - बेटा एक गूढ़ प्रश्न का गूढ़ उत्तर देकर तुमने मुझे निरुत्तर कर दिया और इससे मेरा अभिमान भी पिघला दिया। मैं तुम्हें आशीर्वाद देता हूं कि तुम एक दिन दिव्यात्मा बनोगे। संत ने फिर मामले को संभालते हुए प्रवचन शुरू किया और कहा - देखा आपने? इस बच्चे ने मासूमियत में ही सही, एक बड़े तथ्य की ओर इशारा कर दिया कि जो रोशनी प्रकृति से आती है, वह वहीं चली भी जाती है। ऊर्जा अपना रूप बदलती रहती है। उसके विभिन्न रूपों का हम हमेशा सार्थक प्रयोग करें। हम सब बहुत सी चीजों को समझते हैं, पर उस समझ पर लालच और अहंकार का आवरण चढ़ जाता है। यह कदापि उचित नहीं है। संत के कथन का मर्म उपस्थित लोगों के हृदय तक उतर गया।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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