Re: डार्क सेंट की पाठशाला
बेकार की बातें
सुकरात अपनी विद्वता और विनम्रता के कारण काफी मशहूर थे। वे हर बात को पहले पूरी तरह से समझ लेते थे और उसके वजन के हिसाब से ही उसका जवाब दिया करते थे। बेवजह की बातों पर वे न तो गौर करते थे और न ही उसका जवाब देने की जरूरत महसूस करते थे। एक बार वे बाजार से गुजर रहे थे। उसी बाजार से उनका एक परिचित भी जा रहा था। उसने पहले तो सुकरात को नमस्कार किया फिर कहा - जानते हैं, कल आपका मित्र आपके बारे में क्या कह रहा था। वह मित्र आगे अपनी बात कहता उससे पहले ही सुकरात ने उसे बीच में ही टोका और बोले - मित्र, मैं तुम्हारी बात जरूर सुनूंगा, पर पहले मेरे तीन छोटे-छोटे प्रश्नों के उत्तर दो। उनके उस परिचित ने उन्हें हैरत से देखा कि मेरे कुछ कहने से पहले ही सुकरात मुझसे क्या पूछने वाले हैं। फिर इशारे से मित्र ने सुकरात को प्रश्न पूछने की अनुमति दी। सुकरात बोले - पहला प्रश्न यह है कि जो बात तुम मुझे बताने जा रहे हो क्या वह पूरी तरह सही है? उस मित्र ने पहले तो कुछ सोचा फिर कहा - नहीं । मैंने यह बात सुनी है। इस पर सुकरात बोले - इसका मतलब तुम्हें पता ही नहीं कि वह सही है। खैर, अब क्या तुम जो बात मुझे बताने जा रहे हो, वह मेरे लिए अच्छी है? उस मित्र ने बिना सोच विचार के तत्काल कहा - नहीं, वह आपके लिए अच्छी तो नहीं ही है। आपको उसे सुनकर दुख ही होगा। इस पर सुकरात ने कहा - अब तीसरा प्रश्न, तुम जो बताने जा रहे हो क्या वह मेरे किसी काम की है? उस मित्र ने कहा - नहीं तो ...। उस बात से आपका कोई काम नहीं निकलने वाला। तीनों उत्तर सुनने के बाद सुकरात बोले - ऐसी बात जो सच नहीं है, जिससे मेरा कोई भला नहीं होने वाला ... उसे सुनने से मुझे क्या फायदा ! और एक बात तुम भी सुनो। जिस बात से तुम्हारा भी कोई फायदा नहीं होने वाला हो, वैसी बात तुम क्यों करते हो। यह सुनकर सुकरात का मित्र बेहद लज्जित हो गया और बिना कोई सवाल जवाब किए चुपचाप वहां से चला गया।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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