Re: कुतुबनुमा
अव्वल की होड़ में भरोसा खोता मीडिया
पिछले कई दिनों से एक खबर काफी सुर्खियों में छाई हुई है। फटाफट क्रिकेट यानी ट्वन्टी-ट्वन्टी के ग्लैमरस संस्करण आईपीएल में खेल रहे तीन खिलाड़ी स्पॉट फिक्सिंग में ऐसे पकड़े गए कि पूरे क्रिकेट जगत में हंगामा खड़ा हो गया। अब खबर है तो मीडिया को तो सक्रिय होना ही था। 16 मई को सुबह एक चैनल ने सबसे पहले एक समाचार ऐजेंसी के हवाले से खबर को ब्रेकिंग न्यूज के रूप में जारी किया कि तीन खिलाड़ी स्पॉट फिक्सिंग के चक्कर में पुलिस ने गिरफ्तार किए हैं। बस फिर क्या था, जिस चैनल पर देखो, यही खबर शुरू हो गई। अब इसमें देखा जाए तो नया कुछ नहीं था। एक बड़ी खबर थी और उसे सभी चैनल्स को दिखाना ही तो था। लेकिन यहीं से शुरू हो गया होड़ लेने का सिलसिला और हड़बड़ी में खबर क्या है और उसके वास्तविक तथ्य क्या हैं ये किसी भी चैनल ने शायद जानने की कोशिश ही नहीं की। एक चैनल ने खबर दी कि तीनो खिलाड़ियों को मुंबई के एक होटल से पकड़ा गया है तो एक अन्य चैनल ने अपने मुंबई संवाददाता को लाईव दिखाते हुए खबर दी कि केवल दो को ही पकड़ा गया है। संवाददाता ने अपने मोबाइल पर उसके सूत्र से मिला एसएमएस भी दिखाया और दावा किया कि हमारे सूत्र सही कह रहे हैं कि केवल दो ही खिलाड़ी पकड़े गए हैं। जब स्टूडियो में बैठे एंकर ने कहा कि ऐसी खबरें आ रहीं हैं कि तीन खिलाड़ी पकड़े गए हैं तो संवाददाता ने कहा कि हमारा चैनल सही है। दो ही खिलाड़ी पकड़े गए है। बाद में पिक्चर पूरी तरह साफ हुई और यही सामने आया कि तीन खिलाड़ियों को पकड़ा गया है। अब सवाल तो यह उठता है कि मीडिया इस तरह की खबरों में हड़बड़ी क्यों दिखाता है? जब तक खबर पुख्ता और तथ्यों पर आधारित न हो, जितनी जानकारी हो उतनी ही प्रसारित की जानी चाहिए। लेकिन इन दिनों जिस तरह से समाचार चैनलों के बीच फटाफट और सबसे पहले खबरें दिखाने की जो होड़ चल रही है उसमें वे ना केवल वे दर्शकों का भरोसा तोड़ रहे हैं बल्कि पत्रकारिता के मान्य सिद्धांतों की भी पूरी तरह बलि चढ़ा रहे हैं। आरंभिक खबरों में बिना पुष्टि के यह भी कहा गया था कि तीनो को एक होटल से पकड़ा गया है जबकि गिरफ्तार करने वाली दिल्ली पुलिस के आयुक्त ने शाम को संवाददाता सम्मेलन में कहा था कि तीनो को अलग अलग जगहों से पकड़ा गया है। कुल मिलाकर इससे यह बात साफ हो जाती है कि इन दिनो मीडिया पर संजीदा न होने का जो दोष मढ़ा जा रहा है वह काफी हद तक सहीं साबित हो रहा है। एक समय था जब मीडिया तथ्यों की पूरी छानबीन के बाद ही समाचार दिया करता था और अगर गलती से खबर सही नहीं होती थी तो बाकायदा उसके लिए क्षमा भी मांगी जाती थी लेकिन अब तो ऐसा देखने में भी नहीं आता। मीडिया से जुड़े लोगों , खास कर वरिष्ठ मीडिया कर्मियों का यह फर्ज बन जाता है कि वे इस तरह की हो रही घोर लापरवाहियों को लेकर अब संजीदा हों क्योंकि मीडिया की विश्वसनीयता पहली जरूरत है जो अब धीरे-धीरे गायब होती जा रही है। हड़बड़ी या अव्वल रहने की हौड़ में कहीं ऐसा न हो कि मीडिया जो बची हुई विश्वसनीयता है वह भी खो दे।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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