अगर आपो लोगन में से केहू ई गाना के ऊपर मस्ती से झुमल होखे या ई गाना कै शौक़ीन रहल होये तै अब ई आवाज अब कबहू न सुनाई देई. काहें से की ई मशहूर गाना कै गवैया बालेश्वर यादव जी अब ई दुनिया से जा चुकल बटे.रविवार ०९ जनवरी २०११ को इन्होने लखनऊ के श्यामा प्रसाद मुखर्जी अस्पताल में आखिरी साँस ली, जहाँ ये कुछ समय से इलाज के लिये भर्ती थे। १ जनवरी १९४२ को आजमगढ़ - मऊ क्षेत्र के मधुबन कस्बे के पास चरईपार गाँव में जन्मे, बालेश्वर यादव भोजपुरी के मशहूर बिरहा और लोकगायक थे.
अई...रई... रई...रई... रे, के विशेष टोन से गीतों को शुरू करने वाले बालेश्वर ने अपने बिरहा और लोकगीतों के माध्यम से यू. पी.- बिहार समेत पूरे भोजपुरिया समाज के दिलों पर वर्षों तक राज किया. वे जन जन के ये सही अर्थों में गायक थे. इनके गीत " निक लागे तिकुलिया गोरखपुर के " ने एक समय पुरे पूर्वांचल में काफी धूम मचाई थी.जन जन में अपनी गायकी का लोहा मनवाने वाले इस गायक पर मार्कंडेय जी और कल्पनाथ राय जैसे दिग्गज राजनीतिज्ञों की नज़र पड़ी तो तो यह गायक गाँव- गाँव की गलियों से निकलकर शहरों में धूम मचाने लगा और कल्पनाथ राय ने अपने राजनितिक मंचों से लोकगीत गवाकर इन्हें खूब सोहरत दिलवाई. बालेश्वर यादव २००४ में देवरिया के पडरौना लोकसभा सीट से कांग्रेस पार्टी के टिकट पर जीतकर लोकसभा में भी पहुंचे. इनके गाये गानों पर नयी पीढ़ी के गायक गाते हुए आज मुंबई में हीरो बन प्रसिद्धि पा गये, मगर ये लोकगायक इन सबसे दूर एक आम आदमी का जीवन जीता रहा. ये आम लोंगों के गायक थे और उनके मन में बसे थे. अभी हाल में ही आजमगढ़ के रामाशीष बागी ने महुआ चैनल के सुर संग्राम में इनके गाये गीतों पर धूम मचा दी थी.
भोजपुरी के उत्थान और प्रचार -प्रसार में इनका महत्वपूर्ण योगदान है. इनके गीत न केवल अपने देश में ही प्रसिद्ध हुए बल्कि जहाँ भी भोजपुरिया माटी के लो जाकर बस गए , वहाँ भी इन्हें गाने के लिये बुलाया जाता रहा. इन्होने अपने भोजपुरी गीतों का डंका सूरीनाम, गुयाना, त्रिनिदाद, मारीशस, फिजी, हौलैंड इत्यादि देशो में भी बजाया . सन १९९५ में बालेश्वर यादव को उत्तर प्रदेश की सरकार ने लोक-संगीत में अतुलनीय योगदान हेतु 'यश भारती सम्मान 'से सम्मानित किया था.