Quote:
Originally Posted by rajnish manga
[[....ye nasha jab sir chadhkar bolne lagta hai
tab insa khud ki vahsi fitarat ko sada ke liye hi kho deta hai...]]
मनुष्य मनुष्य के बीच यदि सच्चे प्यार का विस्तार हो और वे एक दूसरे के लिये हर कुर्बानी देने के लिये सदा तैयार हों तो इससे बढ़ कर तन-मन व रूह को खुशी से भरने वाला और कोई नशा हो ही नहीं सकता. वह अपनी वहशी फ़ितरत को भी भूल जाता है जैसा कि आपने अपनी कविता के द्वारा और खास तौर पर उक्त पंक्तियों के ज़रिये समझाने का प्रयास किया है. इस रचना की प्रस्तुति के लिये आपका हार्दिक धन्यवाद, बहन पुष्पा जी.
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सही कहा आपने की यदि एक मनुष्य दूजे से नफ़रत या बैर भाव छोड़कर सिर्फ प्यार से रहे तो स्वर्ग की सुन्दरता और शांति पृथ्वी पर ही विराजमान हो जाय . पर अफ़सोस भाई की कुछ लोग हैं जो सिवा बैर भाव के और नफ़रत के और कुछ अछि चीजों को अपने जहन में स्थान ही नहीं देते.तब तो आतंकी हमले , मेरा धर्म तेरा धर्म बस ये ही हो रहा है इस दुनिया में .
बहुत बहुत धन्यवाद भाई आपने यह कविता पसंद की .