Re: नौ साल छोटी पत्नी
शाम को जब तृप्ता बाजार से लौटी तो उसने कहा, ‘तृप्ता, तुम तीस बरस की कब होगी?’
'क्यों आप मूझे बूढ़ी देखना चाहते हैं?’
'नहीं बूढ़ी नहीं, लेकिन बच्ची भी नहीं। काश! तुम तीस साल की होती।’ कुशल हँस पड़ा था।
कुशल गुसलखाने से लौटा तो कमरे का रूप एकदम बदला हुआ था। खाट, जो इससे पहले कमरे के ठीक बीच पड़ी थी, अब दूसरे कमरे में खुलने वाले दरवाजे़ के साथ टिका दी गयी था। और उस पर अंगूरी रंग की एक नयी शीट बिछी थी। खाट के साथ ही दीवार की बगल में तृप्ता का ट्रंक पड़ा था, जिस पर उसी द्वारा काढ़ा हुआ एक सुन्दर मेजपोश बिछा था और जिसके ऊपर बैठी तृप्ता क्रोशिए से कुछ बुन रही थी। उसने आँखों में काजल की गहरी लकीरें खींच ली थीं। होंठ लिपिस्टिक के हल्के-से स्पर्श से किरमिजी हो गये थे।
कुशल ने यह परिवर्तन देखा तो, मुस्करा दिया। उसे मुस्कराते देख कर तृप्ता ने पूछा, ‘आप मुस्करा क्यों रहे हैं?’
तृप्ता क्रोशिए से पीठ खुजलाने लगी, जिससे उसका ब्लाउज कंधे के नीचे से गुब्बारे सा फूल गया था। कुशल के मन में क्षण भर के लिए यह विचार आया कि वह बाहर का दरवाजा बन्द कर आये, परन्तु स्नान करने से उसकी पिण्डलियों को थोड़ा-सा सुकून मिला था, जिसे वह कुछ देर और कायम रखना चाहता था। उसने सर पर कंघी फेरते हुए कहा, ‘तुम कहती हो तो नहीं मुस्कराता।’
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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