Re: Malika-e-Gazal Begum Akhtar
मलिका-ए-ग़ज़ल बेग़म अख्तर
नामचीन दोस्तों का साथ
फ़िराक़ गोरखपुरी भी उनके क़द्रदानों में थे. अपनी मौत से कुछ दिन पहले वो दिल्ली में पहाड़गंज के एक होटल में ठहरे हुए थे. बेगम उनसे मिलने गईं. फ़िराक़ गहरी गहरी सांस ले रहे थे लेकिन उनके चेहरे पर मुस्कान थी.
उन्होंने अपनी एक गज़ल बेगम अख़्तर को दी और इसरार किया कि वो उसी वक़्त उसे उनके लिए गाएं. गज़ल थी, 'शाम-ए-ग़म कुछ उस निगाहें नाज़ की बातें करो, बेख़ुदी बढ़ती चली है राज़ की बातें करो' जब बेगम ने वो गज़ल गाई तो फ़िराक़ की आंखों से आंसू बह निकले.
बेगम की मशहूर गज़ल ‘ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया...’ के पीछे भी दिलचस्प कहानी है. उनकी शिष्या शांति हीरानंद लिखती हैं कि एक बार जब वो मुंबई सेंट्रल स्टेशन से लखनऊ के लिए रवाना हो रही थीं तो उनको स्टेशन छोड़ने आए शकील बदांयूनी ने उनके हाथ में एक चिट पकड़ाई.
रात को पुराने ज़माने के फ़र्स्ट क्लास कूपे में बेगम ने अपना हारमोनियम निकाला और चिट में लिखी उस गज़ल पर काम करना शुरू किया. भोपाल पहुंचते पहुंचते गज़ल को संगीतबद्ध किया जा चुका था. एक हफ़्ते के अंदर बेगम अख़्तर ने वो गज़ल लखनऊ रेडियो स्टेशन पर गाया... और पूरे भारत ने उसे हाथों हाथ लिया.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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