Re: इस्मत चुगताई की कहानियाँ
वैसे सिविल लाइंस में अमन ही था, जैसा कि होता है। ये तोगन्दगी वहीं अधिक उछलती है, जहाँ ये बच्चे होते हैं। जहाँ गरीबी होती है वहीं अज्ञानता के घोड़े पर धर्म के ढेर बजबजाते हैं। और ये ढेर कुरेदे जा चुके हैं। ऊपर से पंजाब से आनेवालों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही थी जिससे अल्पसंख्यकों के दिलों में ख़ौफ बढ़ता ही जा रहा था। गन्दगी के ढेर तेजी से कुरेदे जा रहे थे और दुर्गन्ध रेंगती-रेंगती साफ-सुथरी सड़कों पर पहुँच चुकी थी।
दो स्थानों पर तो खुला प्रदर्शन भी हुआ। लेकिन मारवाड़ राज्य के हिन्दू और मुसलमान इस प्रकार एक-दूसरे के समान हैं कि इन्हें नाम, चेहरे या कपड़े से भी बाहर वाले बड़ी मुश्किल से पहचान सकते हैं। बाहर वाले अल्पसंख्यक लोग जो आसानी से पहचाने जा सकते थे, वो तो पन्द्रह अगस्त की महक पाकर ही पाकिस्तान की सीमाओं से खिसक गये थे। बच गये राज्य के पुराने निवासी, तो उनमें ना तो इतनी समझ थी और ना ही इनकी इतनी हैसियत थी कि पाकिस्तान और भारत की समस्या इन्हें कोई बैठकर समझाता।
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काम्या
What does not kill me makes me stronger!
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