13-02-2016, 06:40 AM
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Re: वीणावादिनि
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Originally Posted by soni pushpa
वर दे, वीणावादिनि वर दे !
प्रिय स्वतंत्र-रव अमृत-मंत्र नव
भारत में भर दे !
काट अंध-उर के बंधन-स्तर
बहा जननि, ज्योतिर्मय निर्झर;
कलुष-भेद-तम हर प्रकाश भर
जगमग जग कर दे !
नव गति, नव लय, ताल-छंद नव
नवल कंठ, नव जलद-मन्द्ररव;
नव नभ के नव विहग-वृंद को
नव पर, नव स्वर दे !
वर दे, वीणावादिनि वर दे।
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अद्वितीय. विद्या की देवी से अपने देश और परिवेश के लिये ऐसी प्रार्थना प्रतिदिन यदि हर भारतवासी के हृदय से निकले तो देश स्वर्ग बन जाये. संकीर्णता न रहे, आपस में कोई भेदभाव न रहे, वैमनस्य समाप्त हो जाये और देश भर में एक नवीन ऊर्जा का संचार हो, इसी दिशा में हम सब कार्य करें. आइये वीणावादिनी के सम्मुख यही प्रार्थना ले कर जायें. बहुत सुंदर. इतनी श्रेष्ठ कविता शेयर करने के लिये आपका हार्दिक धन्यवाद, बहन पुष्पा जी.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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