Re: प्रेरक लघु कथायें
काफी दूर जाकर वे रुके. एक पुराने खाली मकान में शरण लेने के बाद कुत्ता बोला—
‘तुम्हें लगता होगा कि आदमी ने तरक्की कर ली है. मगर मुझे तो कोई अंतर नजर नहीं आता. कई मामलों में वह आज भी पहले जितना ही जंगली है. धर्म और ईमान के नाम पर अपनों के साथ मारकाट….छि:-छि:! अगर यही बड़प्पन है तो लानत है उसके आदमीपन पर.’ कुत्ते के स्वर में घृणा भरी हुई थी. कुतिया की सांसें चढ़ी हुई थीं. परंतु कुछ सवाल उसके जहन में अभी भी कुलबुला रहे थे. सो पूछा—
‘रास्ते में बच्चों के हडि्डयां उठा लेने पर आप अकस्मात उखड़ क्यों गए थे….खेलने देते उन्हें?’
‘तुम नहीं जानतीं….वे हडि्डयां उन दो दोस्तों की थीं जो कभी बहुत गहरे दोस्त हुआ करते थे. अलग-अलग धर्म के थे. किंतु मित्रता इतनी गहरी थी कि लोग उसकी मिसाल दिया करते थे. एक बार सुना कि वे किसी सफर में थे. रास्ते में उन्हें एक खूबसूरत पत्थर दिखाई पड़ा….’
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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