Re: Jabalpur & Indore (M.P.)
बहुत जगहसे यह दीवार ध्वस्त हो चुकी है। लेकिन बारह दरवाज़े या उनके निशान आज भी माण्डू कीसुरक्षा के लिए किए गए इंतज़ामों का बयान हैं। सबसे प्रमुख है दिल्ली दरवाज़ा। दिल्लीदरवाज़ा। शायद ही कोई ऐसा मुग़लकालीन शहर हो, जिसमें दिल्ली दरवाज़ा न हो। दिल्ली कामहत्त्व सदियों से बना हुआ है और आज भी दिल्ली ही भारत के केन्द्र में है। हम एकदरवाज़े के सामने जा कर रुक जाते हैं, रुकना पड़ता है। सामने भेड़ों का बहुत बड़ा रेवड़चला आ रहा है।
दरवाज़े के दाएँ-बाएँ या तो पहाड़ी है या खाई। हमारा ड्राइवर विनोदबताता है कि यह भंगी दरवाज़ा है। भेड़ों का रेवड़ छोटे-बड़े झुण्डों में धीरे-धीरे निकलरहा है। मेरे मन को यह प्रश्न मथे जा रहा है कि इस दरवाज़े का नाम भंगी दरवाज़ा क्योंहै? बाद में कहीं और पढ़ता हूँ कि इसका असली नाम भांगी दरवाज़ा है। क्या अर्थ है इसशब्द का। नहीं जानता। कोई बताता भी नहीं। लोक-मानस और इतिहास की किताबों में यहभंगी दरवाज़ा ही है। अपने समाज की जातिगत बुनावट को देखते हुए मुझे यही लगता है किहज़ार साल पहले शायद यही नाम रहा होगा इस दरवाज़े का।
इतनी भेड़ें? शशि बोल उठती है – “बक़रीद क़रीब है…शायद क़ुर्बानी के लिए ही कहीं ले जाई जा रही हैं” मैं अपने को उससेसहमत पाता हूँ। थोड़ी ही देर बाद हम फ़िर चल पड़ते हैं और पहुँचते हैं मालवा रिसार्टमें। इसे मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग ने ही विकसित किया है। यूँ तो होटलों में हमकमरों में ही रहते हैं लेकिन यहाँ हमने एक टैंट बुक किया हुआ है। टैंट में रहने कायह हमारा पहला अनुभव था। टैंट में प्रवेश करते ही माण्डू की रोमानी गंध तेज़ी से जकड़लेती है। बहुत सुरुचिपूर्ण तरीक़े से पारंपरिक शैली में सजाया, सहेजा गया है टैंटको। टैंट के अंदर सारी आधुनिक सुविधाएँ मौजूद हैं। परंपरा और आधुनिकता का अदभुतसंगम नज़र आता है वहाँ।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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