यह सुर-संगीत भरा प्रेम अपने यौवन पर ही था कि 1561 में आदम खाँने मालवा पर हमला कर दिया और बाज बहादुर तथा रूपमती को सारंगपुर के पास जा कर पकड़लिया। बाज बहादुर जैसे तैसे भाग निकला लेकिन रूपमती दुश्मन के कब्ज़े में आ गई।वस्तुत: आदम खाँ उस अप्रतिम सुंदरी को हासिल करना चाहता था और उसने अपने प्रेम काप्रस्ताव भी रूपमती के सामने रखा। लेकिन रूपमती ने आदम खाँ के पास जाने के बजायआत्महत्या करना बेहतर समझा। वहीं सारंगपुर में ही रूपमती को दफ़ना दिया गया और अन्तमें बाज बहादुर ने भी रूपमती की क़ब्र पर ही दम तोड़ा। इस कहानी में संभवत: इतिहास कमऔर कल्पना ज़्यादा है लेकिन प्रेम कथाओं का संसार भी इतिहास से कम और कल्पना सेज़्यादा चलता है। हम आज कथा के क़रीब तो थे ही, रूपमती और बाज बहादुर के महल के भीबहुत करीब थे।
सो हम जल्दी ही रूपमती के महल पहुँचते हैं। एक ढलवाँ पहाड़ी पर बनाहुआ यह वही महल है जहाँ से रूपमती एक ओर तो नर्मदा के और दूसरी ओर अपने प्रिय बाजबहादुर के दर्शन कर सकती थी। हम महल के सबसे ऊपरी हिस्से पर बनी छतरी के अंदर दाखिलहो जाते हैं। हवा की एक हिलोर इधर से आए, उधर को जाए और एक हिलोर उधर से आए, इधर कोजाए। प्रदूषण के हिसाब से ज़ीरो टालरेन्स ज़ोन। इस हवा को ज़रा ध्यान से महसूस कीजिए, जैसे संगीत की स्वर-लहरियाँ आपके मन में घुले-मिले प्रेम के भरोसे ही आपके अंदरप्रवेश कर रही हैं। वहाँ थोड़ी देर खड़े रह कर उन हवाओं को छूना और उस परिवेश को जीनाउस दुनिया में प्रवेश करना है, जहाँ सिर्फ़ और सिर्फ़ प्रेम है। यहाँ कुछ देर खड़ेहोना अपने से साक्षात्कार करना है। भौतिक और आध्यात्मिक दोनों स्तरों पर एक साथजीना है। वहाँ से हम नर्मदा देखने की कोशिश करते हैं, लेकिन हलकी-झीनीं धुंध केचलते कुछ भी साफ से दिखाई नहीं देता। वैसे भी समय के साथ नर्मदा का पाट कुछ छोटाहोकर महल से दूर हट गया दिखता है।
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