Re: Jabalpur, Indore & Mandu (M.P.)
हम जामी मस्जिद की ओर रूख़ करते हैं। जामी मस्जिद कीभव्यता बाहर से ही नज़र आने लगती है। मस्जिद के सामने कुछ रेहड़ी वाले और कुछ खोखालगा कर ज़रूरत का सामान बेच रहे हैं। सबसे ज़्यादा भरमार नज़र आती है शरीफ़ों औरख़ुरासानी इमली की। शशि को शरीफ़ा बहुत पसंद है। दिल्ली में अच्छा शरीफ़ा दौ से अढ़ाईसौ रूपए किलो मिलता है। हम शरीफ़े का भाव पूछते हैं, वह उसे सीताफल कहता है। यही नामहै माण्डू में शरीफ़े का। भाव सुनकर हम परेशान हो जाते हैं। बढ़िया शरीफ़ा (सीताफल)तीस रूपए किलो। वहीं तुलवा कर खाने लगते हैं। एकदम मीठा। बिना मसाले के पका हुआ।पेट में जितना समा सकता है, हम खा लेते हैं और फ़िर खुरासानी इमली का स्वाद लेतेहैं।
खुरासानी इमली, सीताफ़ल और खिरनी की वजह से भी माण्डू जाना जाता है। खिरनी तोवहाँ नज़र नहीं आती। शायद उसका मौसम जा चुका है। कहते हैं कि खुरासानी इमली का बीजईरान के नगर खुरासान का बादशाह माण्डू लाया था और उसे माण्डू की आबो-हवा इतनी मुफ़ीदसाबित हुई कि वह वहाँ खूब फलने-फूलने लगा। हम दोनों ने खुरासानी इमली को अपने मुँहमें डाला। खट्टा-मीठा स्वाद लगा, लेकिन हमें वह पसंद नहीं आई। हम लोग तो शरबत सेमीठे शरीफ़ों पर टूटे-पड़े थे।
शरीफ़ों के स्वाद से तृप्त होकर हमने जामीमस्जिद की ऊँची-ऊँची सीढ़ियाँ चढ़ते हुए ऊँचे प्रवेश-द्वार से प्रवेश किया। जामीमस्जिद की गणना देश की अन्य बड़ी मस्जिदों में होती है। कहा जाता है कि इसका निर्माणदमिश्क में बनी मस्जिद की ही शैली में किया गया है, लेकिन इसमें कुछ हिन्दूस्थापत्य का भी मिश्रण हो गया है। इसे बनवाना शुरू तो होशंगशाह ने किया था लेकिनइसका निर्माण 1454 ईस्वी में महमूद ख़िलजी ने पूरा किया। मस्जिद के अंदर बना हुआविशाल आसन और कुछ अन्य तत्त्व भी कई लोगों को इस भ्रम में डाल देते हैं कि वस्तुत:इसका रूप इस तरह क्यों बनाया गया है। यह कहीं कोई पुराना मंदिर तो नहीं, जिसकापरिसंस्कार करके इसे मस्जिद का रूप दिया गया है। इसके स्थापत्य की अफ़गान और भारतीय, दोनों व्याख्याएँ संभव हैं।
>>>
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
|