Re: डार्क सेंट की पाठशाला
धर्म का आचरण
कवि कनकदास का जन्म विजय नगर साम्राज्य के बंकापुर प्रांत में एक गड़रिया परिवार में हुआ था। वह अपना अधिकांश समय ईश्वर की भक्ति साधना तथा अपने इष्टदेव तिरुपति के प्रति पदों की रचना में व्यतीत करते थे। गरीबों की सेवा करने के लिए वह हमेशा तत्पर रहते थे। एक बार उन्हें सोने की मुद्राओं से भरा एक बड़ा घड़ा प्राप्त हुआ। उन्होंने यह बात जब अपने सभी मिलने वालों को बताई तो सभी ने घड़े के मालिक को खोजने के प्रयास किए, पर अथक प्रयासों के बाद भी घड़े का कोई मालिक सामने नहीं आया। आखिरकार घड़ा कनकदास को सौंप दिया गया। कनकदास उस धन को अपने ऊपर खर्च करना पाप समझते थे। काफी सोच - विचार करके उन्होंने उस धन में से आधा हिस्सा निर्धनों के कल्याण पर खर्च कर दिया तथा आधे से कुलदेवता आदि केशव का मंदिर बनवाया। इसके बाद भी थोड़ा बहुत धन बच गया। वह यह विचार करने लगे कि इस धन को कहां खर्च किया जाए, तभी उनके परिवार के एक सदस्य ने कहा कि इसका कुछ अंश क्यों न परिवार की आवश्यकताओं पर खर्च किया जाए। यह सुनकर वह अपने घर के सदस्यों से बोले - बिना परिश्रम के प्राप्त हुए कोई भी धन का अपनी सुख-सुविधाओं के लिए उपयोग करना तो सरासर धर्म के विरुद्ध है। मैं अपनी कविताओं के माध्यम से लोगों को धर्माचरण का उपदेश देता हूं, फिर स्वयं अधर्म का आचरण कैसे कर सकता हूं? मैं अपने परिवार की आवश्यकता के लिए परिश्रम से धन अर्जित कर सकता हूं। आप सभी जानते हैं कि मुझे लेखन तथा काव्य से अत्यंत प्रेम है। मुझे अपनी इस प्रतिभा को निखारकर धन अर्जित करना चाहिए। उसी धन का उपयोग मेरे लिए सही है। कनकदास की बात सुनकर उनके परिवार के सदस्य चुप हो गए। कनकदास ने बचे धन को अपंगों में बांट दिया। इसके कुछ समय बाद ही कनकदास के साहस, निकलंक छवि और समर्पण भाव को देखते हुए बंकापुर राज्य का सेनाध्यक्ष नियुक्त कर दिया गया।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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