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Old 01-07-2015, 12:29 PM   #36
rajnish manga
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Default Re: पता नहीं बेटा

पिता जी!

हाँ, बेटा?

आज मैंने एक कहानी लिखी है.

वाह ..... बेटा ! तुमने तो कमाल कर दिया ! .... पढ़ कर सुनाओ ...

पिता जी, कहानी इस कागज़ पर लिखी है. आप खुद पढ़ लें....

लाओ .... बेटा .... इधर दो ....

फिर पिता जी कहानी पढ़ने में मशगूल हो गये जो नीचे दी जा रही है -

दिल्ली की जनता परेशान थी. एक दिन हार कर उसने विशेषज्ञ डाक्टर से सलाह लेने का निश्चय किया. उसने डॉ संविधान स्वरूप को फोन कर मिलने का समय लिया. निश्चित समय पर दिल्ली की जनता डॉ साहब के नर्सिंग होम में जा पहुंची. डॉ साहब visit निबटा कर अभी लौटे थे. दोनों की बातचीत कुछ इस प्रकार चली-

“डॉ साहब, नमस्कार. हम दिल्ली की जनता हैं. हमारा आज का अपॉइंटमेंट था.”

“ओ .... हाँ ... हाँ. लेकिन क्या आप सभी को एक ही बिमारी है.”

“हाँ डॉक्टर साहब ! हम ‘आल इन वन’ हैं.”

“बताइये .... ?”

“हमारी बीमारी “सीएम छोटे पापा” और “एलजी बड़े पापा” से जुड़ी है. दोनों ही हमारे भारी शुभचिन्तक हैं और दोनों ही हमारी सेवा करने को कृत-संकल्प हैं. होता यह है कि आजकल हर आदेश डुप्लीकेट में निकलता है- एक सीएम ऑफिस से और दूसरा एलजी ऑफिस से. मुख्य सचिव की नियुक्ति करनी है तो दो-दो नाम सामने आ जायेंगे. एंटी-करप्शन-ब्यूरो के चीफ की नियुक्ति होनी है तो दो-दो चीफ दफ्तर सम्हाल लेंगे. छोटे पापा और बड़े पापा दोनों एक-दूसरे को कानून की किताबें दिखाते रहते हैं. इसका परिणाम यह हुआ है कि प्रशासन जैसी कोई चीज नहीं रह गयी. सारी व्यवस्था ठप पड़ी है. हम बेहाल हैं साहब.”

“ऐसा कब से है?”

“जब से नई सरकार सत्ता में आयी है, हुजूर !!”

“उससे पहले कैसे काम चलता था?”

“उससे पहले तो एक आंटी थीं, जो दंगल हारने के बाद जंगल में चली गयीं.”

“क्या उस समय भी ऐसी समस्या थी?”

“नहीं, जनाब! पिछले तीस साल में कभी ऐसा नहीं हुआ, चाहे सरकार किसी पार्टी की रही हो.”

“क्या अन्य राज्यों में भी ऐसा देखने में आया है?”

“नहीं, डॉक्टर साहब. कभी सुना नहीं.”

“इसका मतलब है, यहाँ सत्ता के दो-दो केन्द्र बन गए हैं. दोनों में संवादहीनता की स्थिति है. जब-जब एक ही स्थान पर सत्ता के दोहरे केन्द्र स्थापित होते हैं, तब-तब अव्यवस्था फैलती है. निर्णय प्रक्रिया सुस्त पड़ जाती है.”

“हाँ, डॉक्टर साहब, यही लगता है. परन्तु, इसका इलाज क्या है?”

“समस्या गंभीर है. आप अभी अपने घर जाओ. मैं अपने ऑपरेशन थिएटर में जा कर पहले तो “संघर्ष” और फिर “एक fool दो माली” की सीडी लगाता हूँ, उसके बाद फ्रायडवाद का डेटाबेस चैक करूँगा. मानसिक बिमारी भी हो सकती है. विचित्र समस्या का समाधान भी तो विचित्र होगा. जैसा भी होगा आपको बाद में सूचित करूँगा.”

“आपकी फ़ीस?”

“समाधान मिलने पर ले लूँगा.”

इतना कह कर डॉक्टर संविधान स्वरूप अंदर चले गये और हताश जनता बाहर आ गयी.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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