Re: ब्लॉग वाणी
ममफोर्डगंज के अफसर और सपेरे
-गिरीजेश राव
एक हाथ में मोबाइल, दूसरे हाथ में बेटन। जींस की पेंट। ऊपर कुरता। अधपके बाल। यह आदमी मैं था जो पत्नी के साथ गंगा किनारे जा रहा था। श्रावण शुक्ल अष्टमी का दिन। इस दिन शिवकुटी में मेला लगता है। मेलहरू सवेरे से आने लगते हैं पर मेला गरमाता संझा को है। मैं तो सवेरे स्नान करने वालों की रहचह लेने गंगा किनारे जा रहा था। सामान्य से ज्यादा भीड़ थी की। पहले सांप लेकर सपेरे शिवकुटी घाट की सीढ़ियों या कोटेश्वर महादेव मंदिर के पास बैठते थे। अब नए चलन के अनुसार स्नान की जगह पर गंगा किनारे आने-जाने के रास्ते में बैठे थे। कुल तीन थे वे। उनमें से एक प्रगल्भ था। हमें देख बोलने लगा- जय भोलेनाथ। नाग देवता आपका भला करेंगे। दूसरा उतनी ही ऊंची आवाज में बोला-अरे हम जानते हैं ये ममफोर्डगंज के अफसर हैं। दुहाई हो साहब। मैं अफसर जैसा कत्तई नहीं लग रहा था। मुझे यह ममफोर्डगंज के अफसर की थ्योरी समझ नहीं आई। हम आगे बढ़ गए। स्नान करते लोगों के भिन्न कोण से मैने दो-चार चित्र लिए। गंगाजी धीमे-धीमे बढ़ रही हैं अपनी चौड़ाई में इसलिए स्नान करने वालों को पानी में पचास कदम चल कर जाना होता है जहां उन्हे डुबकी लगाने लायक गहराई मिलती है। लोगों की एक कतार पानी में चलती भी दिख रही थी और उस पंक्ति के अन्त पर लोग स्नान करते नजर आ रहे थे। साल दर साल इस तरह के दृश्य देख रहा हूं। लौटते समय पत्नी ने कहा कि दस-पांच रुपए हों तो इन सपेरों को दे दिए जाएं। मैने पैसे निकाले तो सपेरे सतर्क हो गए। ममफोर्डगंज का अफसर बोलने वाले ने अपने पिटारे खोल दिए। एक में छोटा और दूसरे में बड़ा सांप था। बड़े वाले को उसने छेड़ा तो फन निकाल लिया उसने। पत्नी ने उस सपेरे से प्रश्न जरूर पूछा -क्या खिलाते हो इस सांप को? बेसन की गोली बना कर खिलाते हैं। बेसन और चावल की मिली गोलियां। दूध भी पिलाते हो? यह पूछने पर आनाकानी तो की उसने पर स्वीकार किया कि सांप दूध नहीं पीता। या फिर सांप को वह दूध नहीं पिलाता। वह फिर पैसा मिलने की आशा से प्रशस्ति गायन की ओर लौटा। अरे मेम साहब, (मुझे दिखा कर) आपको खूब पहचान रहे हैं। जंगल के अफसर हैं। ममफोर्डगंज के। मुझे अहसास हो गया कि कोई डीएफओ साहब का दफ्तर या घर देखा होगा इसने ममफोर्डगंज में। उसी से मुझको कॉ-रिलेट कर रहा है। पत्नी ने उसे दस रुपए दे दिए। दूसरी ओर एक छोटे बच्चे के साथ दूसरा सपेरा था। वह भी अपनी सांप की पिटारियां खोलने और सांपों को कोंचने लगा। जय हो! जय भोलेनाथ। यह बन्दा ज्यादा प्रगल्भ था पर मेरी अफसरी को चम्पी करने की बजाय भोलेनाथ को इनवोक (पदअवाम) कर रहा था। उसमें भी कोई खराबी नजर नहीं आयी मुझे। उसे भी दस रुपए दिए पत्नी ने। तीसरा अपेक्षाकृत कमजोर मार्केटिंग तकनीक युक्त सपेरा भी था। उसको देने के लिए पैसे नहीं बचे तो भोलेनाथ वाले को आधा पैसा तीसरे को देने की हिदायत दी। मुझे पूरा यकीन है कि उसमें से एक पाई वह नहीं देगा। हमारे सपेरा अध्याय की यहीं इति हो गयी। लौट पड़े। लोगों की एक कतार पानी में चलती भी दिख रही थी और उस पंक्ति के अन्त पर लोग स्नान करते नजर आ रहे थे।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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