Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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Originally Posted by suraj shah
था आज भी दश्त-ए-बला में नहर पर पहरा
कितनी सदियों बाद मैं आया मगर प्यासा रहा
(अख्तर सईद खान)
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हुशियार कि आसेब मकानों में छिपे हैं
महफूज़ नहीं कूचा-ओ-बाज़ार खबरदार
तीरों की है बौछार क़दम रोक उधर से
इस मोड़ पे चलने लगी तलवार खबरदार
आसेब = प्रेत आत्मा
(मुज़फ्फ़र हनफ़ी)
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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