Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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Originally Posted by suraj shah
न मौलाना में लग्ज़ि्श है न साज़िश की है गाँधी ने
चलाया एक रुख़ उनको फ़क़त मग़रिब की आंधी ने
(अकबर इलाहाबादी)
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कभी वह सामने आये तो यह आलम भी होता है
नज़र मिलने को मिल जाती है पहचानी नहीं जाती
(ज़िया अली)
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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