मेरी कहानियाँ / आत्महत्या
मेरी कहानियाँ / आत्महत्या
“यह खून? यह खून यहां कैसे आया?” एस.एच.ओ. ने अपने अधीनस्थ पुलिस कर्मी से फर्श पर दृष्टि गड़ाते हुये पूछा.
“कहाँ साब .... ?”
“अबे ये मेरे पांवों के पास ... है कि नहीं ... ?”
“मुझे तो साहब नजर नहीं आ रहा ... हिच .. “
“हिकमत सिंह, लगता है तूने ज्यादा पी ली है ...”
“हाँ ... सरकार ...हिच ... नहीं ... सरकार .. “
“तो ये खून तुझे दिखाई नहीं देता?”
“हाँ .... सरकार ...हिच ... कुछ दीखता तो है ... “
कांस्टेबल हिकमत सिंह अपने अफसर की हाँ में हाँ मिलाने को ही अपना फ़र्ज़ मानता था. नशे के जोश में उसने कुछ अटपटा बोल दिया था लेकिन जल्द ही उसने स्वयं को सम्हाल लिया.
“हाँ सा’ब बिलकुल है .. हिच ... ”
“जानता है यह खून किसका है?
“मैं तो कांस्टेबल हूँ सरकार .. “
“ताराचंद जाट का ... “ उसे कानाफूसी का स्वर सुनाई दिया. शराब के नशे में एस.एच.ओ. भी खुलने लगा था. कांस्टेबल जानते हुये भी पहल न कर रहा था.
“हाँ सरकार ... उसी का है ... ठीक?”
“उसका खून किसने किया? जानते हो?”
“नहीं सरकार ... हिच .. किसी ने भी नहीं ... उसने तो .. हिच .. आत्महत्या कर ली बताते हैं ... “
“शाबाश, अब तुमने जिम्मेदारी का परिचय दिया है ... हमें यही साबित करना है कि उसने आत्महत्या कर ली है ... “
“यह काम तो ...हिच .. बाए हाथ का है ... बाएं हाथ का ... आप क्या नहीं कर सकते .. हिच ..? विलायती बोतल बहुत.. हिच .. उम्दा थी सा’ब ... “
“ अबे चुप ...”
“भगवान ... हिच ... आपका इकबाल .. हिच .. बुलंद करे ... हिच .. “
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