07-01-2015, 09:09 PM
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Re: खलील जिब्रान और उनकी रचनायें
खलील जिब्रान
दो शिकारी
वसंत ऋतु में एक झील के किनारे हर्ष और शोक की मुलाक़ात हुई. अभिवादन के बाद दोनों झील के किनारे बैठ कर बात-चीत करने लगे.
हर्ष तो पृथ्वी पर मौजूद प्राकृतिक सुन्दरता का, परबत का, वन्यान्य जीवन के चमत्कारों का नित्य प्रति सुनाई देने वाले प्रातःकालीन व सांध्यकालीन संगीत के बारे में रस लेकर चर्चा करने लगा.
तब शोक हर्ष के कथन से सहमती प्रगट की क्योंकि वह समय के आकर्षण व उसके सौंदर्य से परिचित था. जिस समय शोक मैदानों और पर्वतों की सुन्दरता के बारे में बोल रहा था तो उसकी वाणी सजीव हो उठी थी.इस प्रकार हर्ष और शोक काफी देर तक बात करते रहे. दोनों एक दूसरे से सहमत होते हुए दिखाई दे रहे थे.
उसी समय उस झील के किनारे पर दो शिकारी दिखाई दिए. जैसे ही उन्होंने झील के चारों ओर दृष्टि उठा कर देखा, उनकी नज़र इन दोनों पर पड़ी. शिकारियों में से एक बोला, “आखिर ये दोनों कौन है?”
“दोनों कौन? मुझे तो केवल एक ही दिखाई दे रहा है.”
तब पहले शिकारी ने कहा, “लेकिन वहां तो मुझे दो दिख रहे हैं.”
दूसरा बोला, “मैं तो एक को ही देख पा रहा हूँ. और झील में छाया भी तो एक की ही पद रही है.”
“नहीं वहाँ दो ही हैं. पहला शिकारी बोला, “और झील में छाया भी दो ही की है.”
दूसरे शिकारी ने असहमत होते हुए कहा, “लेकिन मैं तो एक ही को देख पा रहा हूँ.”
पहले ने फिर कहा, “मगर मैं तो दो जनों को देख रहा हूँ.”
आज भी उन दोनों में बहस जारी है. एक शिकारी का कहना है कि उसके मित्र को कोई एनटीआर रोग हो गया है जिसके कारण उसे एक की जगह दो दिखाई देने लगे हैं. दूसरा शिकारी कहता है, “मेरे मित्र को कुछ कम दिखाई देता है.”
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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