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Originally Posted by soni pushpa
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नकली फकीरों और नकली साधु संतों की हल-चल संसार में ज्यादा होने का कारण ही यही है , कि लोग झूठ सुनना चाहते हैं, झूठ पर यकीन करना चाहते हैं, झूठे दिलासों में जीना चाहते हैं। सो लाख कह दिया जाए कि फलाँ संत फर्जी है, मगर लोगों को फर्जी संत चाहिए। चाहे जो कह दो लोग फ़र्जी संतों के पास ही जाएँगे। इस कठोर दुनिया में झूठ और झूठे दिलासे ही उनका सहारा हैं, सो जैसी डिमांड वैसी सप्लाय है।
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बहुत शिक्षाप्रद प्रसंग है. आजकल ढोंगी बाबाओं का ज़माना है. चालाकी और दिखावा अधिक आकर्षक लगता है. कर्म से अधिक भाग्य पर भरोसा करते हैं लोग और भाग्यवादी ही ढोंगी बाबाओं के चंगुल में फंसते हैं. बहुत सुंदर आलेख है. धन्यवाद, बहन पुष्पा जी.