Re: मेरी ज़िंदगी : मेरे शहर
(४)
एक गज़ल : अपना जिसे कहा वो बेगाना निकल गया.
(शायर का नाम ‘अमीर’, इससे अधिक ज्ञात नहीं)
अपना जिसे कहा वो बेगाना निकल गया.
शायद वो दोस्ती का जमाना निकल गया.
दिन ज़िन्दगी के मेरे अकेले गुज़र गए
वो करके मुझ से कैसा बहाना निकल गया.
बुलबुल की जिन्दगी सी हुई जिन्दगी मेरी
सैय्याद का भी सच्चा निशाना निकल गया.
टूटे हुये तारों का इक साज़ हूँ मैं ए दोस्त!
इक चोट जो पड़ी तो तराना निकल गया.
इक रोज़ उनकी राह से गुजरा जो मैं अमीर
सब लोग कह उठे कि दीवाना निकल गया.
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