Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
इस प्रेम त्रिकोण का अंत करना ही मुझे श्रेष्यकर लगा और मैं मन ही मन सोंच रहा था कि रधिया को रीना के बारे में सब कुछ बता दूं पर उसके चेहरे के हाव-भाव और उसके प्रेमपूर्ण व्यवहार की वजह से मैं ऐसा करने का हिम्मत नहीं जुटा सका पर मैंने उसे इस तरह की हरकत करने से यह कह कर रोक दिया कि यह सब ठीक नहीं है। पर रधिया पर प्रेम की खुमारी थी सो वह थोड़े गुस्से में बोली-
‘‘ की खराबी है, प्रेम करो हियय बुराई की है।’’
‘‘समाज एकरा ठीक नै मानों है’’ मैं ऐसा कह ही रहा था कि वह वहां से हंसती हुई भाग गई पर जब वह मेरे घर से निकल रही थी तभी रीना आ गई, लगता है किसी तरह से उसने उसे मेरे घर में देख लिया और आते ही घर से निकल रही रधिया को रोक कर उस पर बरस पड़ी।
‘‘आंय गे छौंड़ी, कुछो शरम नै हौ, अपन गांव से दुसरको के गांव आके इहे सब करमहीं।’’
‘‘की इहे सब करमहीं, की कइलिऐ हें’’ रधिया भी भड़कते हुए जबाब दिया। उसे क्या पता कि रीना सब कुछ जानती है और उसने उसका प्रेम पत्र भी पढ़ लिया है सो वह उससे कड़क कर बोलना चाही पर रीना ने जो जबाब दिया तो वह सकपका कर भाग गई। रीना ने उसे कहा कि जा कर दीदी को तुम्हारा प्रेम पत्र दिखातें है और राधा समझ गई की यह सब कुछ जानती है। खैर मेरे लिए राहत की बात यही थी रीना को मैंने बता दिया था और जब रीना मेरे घर आई तो वह नाराज इस बात से हो गई कि मैं रधिया को अपने संबंध के बारे में क्यों नहीं बताता, तब रीना को मैंने समझाया कि अभी तक तो अपने बारे में गांव में कोई नहीं जानता पर जैसे ही उसे बताउंगा सब जान जाएगे, पर रीना में मुझसे ज्यादा साहस था सो उसने तन कर जबाब दिया,
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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