कमलेश नवीन को लगातार साथ देती रही। दो महीने पुरे होने से पहले ही नवीन ने एक अच्छा घर खरीद लिया। (नवीन जैसा किस्सा शायद एसा फिल्मों में ही होता होगा...लेकिन कई बार ईससे भी बडी सफलता रीयल लाईफ में देखने को मिलती है!) होस्पिटल में ठीक होने के बाद अपनी मां को नवीन नए घर में ले आया। अभी तक उसने मां से नहीं कहा था की बाबुजी को जेल हो गई है। बल्की यही बताया था की मुकदमा चल रहा है।
ईस दौरान कहानी मे नवीन के बहन मोहीनी की खराब हालत भी बयां की गई है। लेकिन उसका पति उसे पुरा साथ देता है। वह खुद ही मोहीनी को सबसे मिलवाना चाहता है, लेकिन एसे छुप कर अपने परिवार से मिलना भी किसको गंवारा होता?
सत्यप्रकाश को अच्छे वर्तने के कारण एक महीना जल्दी ही रिहाई मिल गई। नवीन सबसे पहले तो उस गराज में जाता है जहां बाबुजी की गाडी गीरवी रखनी पडी थी। वहां उसे पुरी नई जैसी करवा कर ही नवीन जेल में बाबुजी को लेने आता है।
एक्टर सुब्बीराज को ही सत्यप्रकाश के रोल में मैने हंमेशा ईमेजीन किया है। सत्यप्रकाश का केरेक्टर एकदम संतोषी और गंभीर दिखाया गया है। कई बार लिखा गया है की...सत्यप्रकाश ने बडे संतोष से जवाब दिया, उनके मुख पर शांत मुस्कुराहट थी...वगैरह।
वह बाहर निकल कर अपनी कार को पहचान लेतें है। रास्तें में नवीन ने अपने नए बिझनस के बारे में थोडा बहुत बताया। एक बडे से होर्डिंग को दिखा कर नवीन कहता है...देखिये बाबुजी यह आपका ही फोर्मुला है!
सत्यप्रकाश गर्व से अपने बेटे को फिर उस होर्डिंग को देखने लगे।
(यह सीन बहुत अच्छा लिखा गया है। जब जब में ईस सीन को पढता हुं, रोंगटे खुशी से खडे हो जातें है! यह सीन मुझे क्लाईमेक्स जैसी ही फील देता है। अब सब कुछ ठीक हो गया लगता है । शायद अनुराग भी यही सोचते। लेकिन फिर से मैं दिवास्पन में जा कर उन्हें बताता हुं....सर फिल्म अभी बाकी है! अभी कुछ ओर मोड आने वाले है!)