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Old 27-08-2013, 05:30 PM   #13
jai_bhardwaj
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Default Re: गीली यादों के कुछ पल .....

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Originally Posted by dr.shree vijay View Post
बेहतरीन साहित्यिक रचना...........................

बहुत बहुत आभार बन्धु।

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Originally Posted by rajnish manga View Post
कुछ कल्पना, कुछ यथार्थ, कभी मंजिलों के होने का खौफ़, कभी रिश्तों और रास्तों को तलाश करने की जद्दोजहद व एक अनजाने सफ़र पर जाने की ख्वाहिश. ठहराव के बिना पात्रों की वर्णित मनःस्थिति कहीं कहीं पाठक को भी विचलित करती है.

मुझे शायर का निम्नलिखित कथन बहुत अपील करता है:

मुसाफिर अपनी मंजिल पर पहुँच कर चैन पाता है
वो मौजें सर पटकती हैं जिन्हें साहिल नहीं मिलता

काश, आलेख से बाहर निकल कर पात्र इस बारे में अपना विचार रख पाते.


आप ने सच ही कहा है किन्तु स्मृतियाँ ठहरती कहाँ है? वे तो चंचल बनी रहती हैं .. एक पल को यहाँ तो अगले ही पल कहीं और ... तब भला पात्र स्थिरचित्त कैसे हो सकता है ? यही तो चंचल मन की शास्वत सत्यता को प्रतिपादित करता है।

और हाँ बन्धु .......

किसी शायर के उत्कृष्ट शे'र के लिए मैं हृदय से आभारी हूँ। धन्यवाद।
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

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