Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
एक अजीब सा उन्माद छा गया। जाकर उसी बूढ़ा बरगद के नीचे बैठ गया जहां रीना को बांहो में लिया था। मन ही मन उससे बातें करने लगा। लगा जैसे वह सबकुछ सुन समझ रहा हो। अब मन ने विद्रोह कर दिया था और सोंच लिया की पढ़ने के लिए पटना नहीं जाना। जो होना होगा, सो होगा।
शाम में यूं ही टहलता हुआ जा रहा था कि रामदुलारी भौजी ने आवाज दी-बबलू बौउआ, कने भटक रहला हें, आबो, बैठो।’’
इससे पहले भी भौजी से बात चित के क्रम में एकाध बार रीना का जिक्र आ गया था तो उन्होंने हौसला ही दिया था, सो आज कदम उनके घर की ओर चला गया।
‘‘बैठो बउआ, काहे ले इ सब करो हो, सुनोहिओ रजनीश सिंह से लड़लहो हें, जानो हो नै, उ निरबंशा कैसन है।’’
‘‘छोड़ो भौजी बहुत दिन सीघा बनके रहलिए अब परिणाम देख लेलिए, साला कोई जीएले नै देतै।’’
‘‘हां बउआ से तो है, पर रीना बउआ भी तोरा पर जान दे हखुन, गरीब अमीर तो दुनिया मे होबे करो है। बेटिया के बियाह देला के बाद जब दमदा गरीब हो जा हई तब अदमिया की करो है। नसीबा केकरो हाथ में होबो हई।’’
भौजी मेरे मन की बात कह रही थी। हौसला दे रही थी। बहुत कम लोग थे जो मेरे साथ थे उसमें से भौजी एक थी। भौजी का नैहर रीना के ननीहाल में था सो उनसे मेरा विशेष लगाव था।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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