Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
शादी में सारा परिवार खुश था, खास कर बाबा पर शादी के कुछ माह बाद ही जब दोसूतबली चाची घर आई तो चाचा के पान की दुकान से होने वाली थोड़ी बहुत कमाई का हिस्सा जो घर खर्चे में लगता था वह भी चूकता रहा। चाची ने बाबा से साफ कह दिया कि-‘‘खाय बला सब बड़का बेटबा के हो तो कमाई बला हमर सैंया काहे, हमरा बांट के अलग कर दा।’’ उस रोज सात दशक पार कर चुके, लाठी टेक कर चलने वाले बाबा ने मर्यादा की सारी सीमाओं को पार कर सहारे की लाठी को छीनता देख चाची को लाठी लेकर मारने के लिए दौड़ पड़े। जिन बुढ़ी आंखों में अभी अभी बेटे का घर बसने की खुशी थी उनमें आज आश्रु के धार थे। छोटा भाई, जिसको कभी भी स्कूल जाने का सुअवसर नहीं मिला और पान की दुकान पर बैठना घर खर्चे की जिम्मेवारी में उसकी अपनी भागीदारी थी।
खैर, जब इन सब बातों को याद करता तो कहीं दूर से जैसे कोई आवाज आती कि जिस प्रेम को पाने का तुम आकांक्षी हो उसी प्रेम के दुख का कारक भी क्या तुम्हीं बनोगे?
किशोरपन के इस दोराहे पर उपन्यास पढ़ने की लत लग गई थी जिसमें गुलशन नन्दा की लवस्टोरी तथा सुरेन्द्र मोहन पाठक की उपन्यास का मैं दिवाना हो गया था। पाठक जी के उपन्यास का कई डायलॉग जीवन को दोराहे से उबारने वाला साबित होता। उन्हीं में से ‘‘जो तुघ भाये नानका सोई भली तुम कर’’ संवाद के सहारे जीवन की नाव को ईश्वर के हवाले कर दिया।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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