Re: एक लम्बी प्रेम कहानी
आम तौर पर इस समय सड़क पर शाम में टहलने वाले लोग रहते थे पर आज क्या हो गया। कुछ मामला है कि कोई नजर नहीं आ रहा। कुछ ही क्षणों में कई सवाल मन में गुजर गए और साईकिल के पैंडिल पर पांव की रफ्तार तेज होने लगी। जैसे ही मरकटटी बाग के पास पहूंचा लगा कि कोई साईकिल के पिछले पहिये को जकड़ लिया हो और वह बढ़ ही नहीं रहा था। वह गर्मी और सर्दी के बीच का मौसम था पर मेरे चेहरे से पसीने की बूंद टपकने लगे और पूरा शरीर पसीने से लथ पथ हो गया। ऐसा लगा कि जैसे सांस थम ही जाएगी और आज मैं जिंदा यहां से नहीं जाउंगा। मेरा ध्यान भी पेट की ओर गया कहीं यह फूल तो नहीं रहा। गांव में एक मान्यता यह भी थी कि लोहा के संपर्क में रहने से किचिन या भूत नही पकड़ता सो मेरी पकड़ साईकिल पर और मजबूत हो गई। मुझे मन ही मन लग रहा था कि किचिन साईकिल छिनना चाहती है पर मैंने पूरी ताकत से साईकिल को पकड़ रखा था। जोर जोर से हनुमान चालीसा का पाठ भी प्रारंभ कर दिया। जय हनुमान ज्ञान गुण सागर।
साईकिल पर मेरे पांव का दबाब बढ़ता गया और मेरे शरीर में जितनी ताकत थी वह मैं साईकिल के पैडल को घूमाने में लगा रहा था और साईकिल बढ़ ही नहीं रही थी। किसी ने साईकिल को जकड़ लिया था। पर मैंने भी हार नहीं मानी और पैडल पर दबाब बनाता रहा, धीरे धीरे साईकिल बढ़ती गयी और मैं एक बार भी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। घर तक पहूंचने में बहुत समय लगा, पर पहुंच गया। जान में जान आई, पर साईकिल का पहीया अभी भी नहीं घूम रहा था।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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