Re: निंदक नियरे राखिये
कुकी जी, विचार विमर्श हेतु उक्त विषय का चनाव करने के लिए धन्यवाद.
कबीर दास जी सीधे साधे व्यक्ति थे, भक्त थे और छल कपट से दूर रहते थे. वह सदा आडम्बर के विरुद्ध आवाज़ उठाते रहे. चाहे इसके लिए उन्हें हिंदु और मुस्लिम कट्टर पंथियों का विरोध भी झेलना पड़ा. वह लोगों की सोच में सुधार लाना चाहते थे. इसी आधार पर वह कहते हैं कि हमें हमारी कमियाँ बताने वाला व्यक्ति हमारा शत्रु नहीं बल्कि मित्र है, वह वास्तव में हमारा शुभचिंतक है.
आज हम किसी भी क्षेत्र को देखें- राजनीति, व्यापार, शिक्षा, नौकरी, रहन सहन हर जगह प्रतिस्पर्धा है. हर व्यक्ति दिखावा करना चाहता है, अच्छे बुरे की परवाह न करके दूसरों से आगे बढ़ना चाहता है. ऐसा करते हुए उसे यह ग़लतफ़हमी रहती है कि वह जो कुछ कर रहा है वह सब ठीक है. हाँ, दूसरे लोगों को वह ऐसा करने पर बुरा भला कहता है. यह हमारी hypocricy है, यानी कहते कुछ हैं और करते कुछ हैं. यही है 'पर उपदेश कुशल बहुतेरे'.
जीवन में हमें अनेकों साथी, मित्र, नाते-रिश्तेदार, उपदेशक आदि मिलते हैं जो गाहे-ब-गाहे हमें criticize तो करते हैं लेकिन सुधार लाने की क्षमता से महरूम होते हैं. ऐसे में ज़रुरत है एक सच्चे मित्र की, सच्चे गुरू की जो हमें हमारी गलतियों का भान करा सके और हमें उचित मार्ग दिखा सके. यानी वही हमारे दोष बताने वाला निंदक होगा. सच्चा मित्र या सच्चा गुरू ही सच्चा निंदक हो सकता है जो हमारी खिल्ली उड़ाने के स्थान पर genuinely हमें सही रास्ते पर ले जाना चाहता है और जिस पर हमें भी पूरा भरोसा हो.
मुझे ग़ालिब का एक शे'र याद आ रहा है:
ये कहाँ की दोस्ती है के बने हैं दोस्त नासेह
कोई चारा साज़ होता कोई ग़म गुसार होता
(नासेह = उपदेशक / चारासाज़ = इलाज करने वाला / ग़म गुसार = दुःख बँटाने वाला)
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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