Re: डार्क सेंट की पाठशाला
रास्ते का पत्थर
मनुष्य को हमेशा अपने अलावा दूसरों के बारे में भी सोचना चाहिए। उसे यह जरूर देखना चाहिए कि जिन-जिन वजहों से उसे कष्ट होता है, वही वजह दूसरों के लिए भी कष्टकारी हो सकती है। अपना भला तो सभी चाहते हैं, लेकिन वास्तव में सज्जन पुरूष वही होता है, जो दूसरों की भी भलाई चाहे। निस्संदेह इसमें कभी कभार कष्ट भी उठाना पड़ता है, लेकिन उस कष्ट का आनंद ही कुछ और है, जो दूसरों के लिए उठाया जाए। लौह पुरूष सरदार वल्लभ भाई पटेल का बचपन गांव में बीता था। वह जिस गांव में रहते थे, वहां कोई अंग्रेजी स्कूल नहीं था, इसलिए गांव के बच्चे रोज दस-ग्यारह किलोमीटर पैदल चलकर दूसरे गांव पढ़ने जाया करते थे। गर्मियों में स्कूल में पढ़ाई सुबह सात बजे से ही शुरू हो जाती थी, इसलिए गांव के बच्चों को सूर्योदय से पहले ही निकलना पड़ता था। एक दिन छात्रों की टोली स्कूल जाने के लिए निकली, तो उन्होंने पाया कि उनकी टोली में से एक छात्र कम है। दरअसल वल्लभ भाई पटेल पीछे रह गए थे। लड़कों ने मुड़कर देखा, तो पाया कि वल्लभ भाई एक खेत की मेड़ पर किसी चीज से जोर आजमाइश कर रहे हैं। साथियों ने दूर से ही आवाज दी - क्या हुआ? तुम रुक क्यों गए? वल्लभ भाई ने वहीं से चिल्लाकर कहा - जरा यह पत्थर हटा लूं, उसके बाद आता हूं। तुम लोग आगे चलो। साथियों को ध्यान में आया कि खेत की मेड़ पर एक नुकीला सा पत्थर लगा था, जिससे कई बार उन्हें ठोकर लग चुकी थी, पर आज तक किसी को उसे हटाने का ख्याल नहीं आया। साथी वहीं खड़े वल्लभ भाई का इंतजार करने लगे। वल्लभ भाई ने जब पत्थर हटा लिया, तो साथियों के पास पहुंच गए और फिर चलते हुए बोले - रास्ते के इस पत्थर से अक्सर बाधा पड़ती थी। अंधेरे में न जाने कितनों को इससे ठोकर लगती होगी और वे गिर भी जाते होंगे। ऐसी चीज को हटा ही देना चाहिए। इसलिए आज घर से तय करके ही चला था कि उस पत्थर को हटा कर ही दम लूंगा। सारे बच्चे आश्चर्य से वल्लभ भाई को देख रहे थे। दूसरों के हित के लिए कष्ट उठाने की भावना उनमें बचपन से ही आ गई थी। धीरे-धीरे यह भावना और बढ़ती गई। यही वह सबसे बड़ी वज़ह भी है, जिसने उन्हें नेतृत्व के शिखर तक पहुंचाया।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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