हिंदी भवन, विष्णु दिगम्बर मार्ग, नई दिल्ली यह मात्र एक पता नहीं है बल्कि यहां से एक ऐसी गाथा शुरू होती है, जिसमें प्रेरणा भी है, पूंजीवाद से लड़ने की ताकत भी है और साहित्य के प्रति श्रद्धा भी है.
चाय की दुकान चलाने वाले लक्ष्मण राव के पास लोग सिर्फ़ चाय पीने नहीं आते, बल्कि उनके द्वारा लिखी 25 से अधिक किताबों को पढ़ने और खरीदने भी आते है. 20 साल पहले लेखक बनने का सपना ले कर दिल्ली आये लक्ष्मण राव जब प्रकाशकों के पास अपनी रचना ले कर गये तो उन्हें दर-दर की ठोकरों के अलावा कुछ नहीं मिला.