Re: सुंदर धरती (The Good Earth)
अब उसने लड़की कि ओर मुखातिब हो कर कहा,
“उसकी आज्ञा का पालन करना और उसके बहुत से पुत्रों की माँ बनो. अपने पहले बच्चे को मेरे पास ले कर आना. मैं उसे देखना चाहूंगी.”
“अच्छा, मालकिन माता,” उस औरत ने समर्पण वाले स्वर में कहा.
वे खड़े हुये हिचकिचा रहे थे, और वांग लुंग बड़ा परेशान हो रहा था, नहीं जानता था कि उसे क्या बात करनी चाहिए या क्या करना चाहिए.
“ठीक है, अब जाओ,” बूढ़ी स्त्री ने रूखे स्वर में कहा. वांग लुंग हडबडा कर झुकते हुये मुड़ा और कंधे पर ट्रंक उठाये बाहर को चल पड़ा, उसके पीछे वह स्त्री और फिर दरबान भी बाहर निकला. यह बाक्स वांग लुंग ने उस कमरे में, जहाँ उसकी टोकरी रखी थी, जाते ही जमीन पर रख दिया, इससे आगे वह हरगिज़ इसे उठाने वाला नहीं था, और वास्तव में वह बिना कुछ बोले वहाँ से नदारद हो गया.
तब वांग लुंग स्त्री की ओर मुखातिब हुआ और पहली बार उसके चेहरे को देखा. उसका चेहरा चोकोर व सीधा साधा लगा, उसकी नाक छोटी व चौड़ी थी और नासिका छिद्र काले थे, मुंह फैला हुआ था जैसे चेहरे में कोई घाव रह चुका हो. उसकी आँखें छोटी थीं जिनका रंग धुंधला काला था, जिनमे कोई अकथनीय उदासी भरी हुयी प्रतीत होती थी. यह एक ऐसा चेहरा था जो आदतन चुप रहने वाला व न बोलने वाला था, जैसे बोलने का मौका मिलने पर भी बोल ना सकने वाला.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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