लगभग दो वर्ष बाद आपको फिर से अपने बीच पाकर मुझे आश्चर्य मिश्रित प्रसन्नता हो रही है, मित्र. इसे कहते हैं 'देर आयद दुरुस्त आयद'. अब हम आपको 'नौ दो ग्यारह' नहीं होने देंगे और हमें उम्मीद है कि आप हमसे 'मुंह मोड़ कर न जायेंगे.'
^ मुहब्बत इन परिंदों में, क़ायम रहे ताज़िन्दगी
इससे बढ़ कर और क्या होगी ख़ुदा की बंदगी
अपने किये हर कौल या वादे पे ये क़ायम रहें
दोनों जहाँ से मुड़ के न इनको मिले शर्मिंदगी