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Originally Posted by internetpremi
धन्यवाद दीपुजी।
धर बैठे बैठे ही आज रोहतक की सैर करा दी आपने।
पुरानी यादें ताजा हो गई।
हम १६६७-७२ में bits pilani के छात्र थे। वहाँ इन्जिनियरिंग की पढाई की थी।
दिल्ली से पिलानी, हम बस में जाते थे और बस रोहतक-भिवानी-लोहारू होते हुए पिलानी पहुँचता था।
रोहतक बस अड्डे पर बस कुछ देर के लिए रुकता था और हम चाय/समोसे का आनंद उठाते थे। समोसे को "त्रिकोण" कहते थे।
उस समय का रोहतक और आज का रोहतक में काफ़ी अंतर है और विकास साफ़ जाहिर है।
चित्र सभी अच्छे हैं पर यदि हर चित्र के साथ एक लाइन का caption या शीर्षक होता, तो और अच्छा होता।
शुभकामनाएं
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अगले चित्रों में कोशिश करता हूँ