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Originally Posted by Rajat Vynar
अन्यथा दक्षिण में बस गए हिन्दी भाषी भी हिन्दी में पीएचडी० करने के उपरान्त भी बोलते अथवा लिखते समय स्त्रीलिंग और पुल्लिंग में भेद न कर पाने के कारण भ्रमित होकर गलतियाँ करते हुए पाए गए हैं।
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आप सही कह रहे हैं।
हिन्दी में लिंग भेद हम दक्षिण भारतीय लोगों की सबसे बडी समस्या है।
मैं आज भी इसमें ग़लती करता हूँ।
किसी भी दक्षिण भारतीय भाषा में यह "का" और "की" की समस्या नहीं है।
कब "कि" और और कब "की" का प्रयोग करते है?
"मैं आ रहा हूँ" , "और मैं आ रही हूँ", दोनों के लिए तमिल में "नान वरुकिरेन" कहते हैं चाहे आने वाली/वाला महिला हो या पुरुष. अंग्रेज़ी में भी "I am coming" दोनों के लिए ठीक है।
ह्मने यह भी नोट किया है कि लिंग, तर्क के हिसाब से नहीं होता।
कोइ व्याकरण के नियम नहीं हैं इस विषय में।
सब usage पर निर्भर है।
हमने लोगों से कहते हुए सुना है "मैंने पैंट सिलवाई है" ,"मेरा ब्लाउज़ फट गया।"
पैंट feminine कैसे हुई? ब्लाउज़ masculine कैसे हुआ?
चलो ये तो अंग्रेज़ी के शब्द हैं तो शायद बेतुकापन स्वाभाविक है, पर "घाघरा" masculine कैसे हुआ ?और "लंगोटी" कैसे feminine हुई ?
और जब एक ही वाक्य में हिन्दी और उर्दू के शब्द मिलाकर लिखते हैं तो "नुक्ता" लगाने में (या न लगाने में) हम बार बार ग़लती करते हैं। अभी तक हममें से कई लोगों को अक्षर की नीचे लगने वाली बिन्दु की आवश्यकता समझ में नहीं आई।
अभी तक दक्षिण भारत के लोगों को यह बात समझ में नहीं आई है, के "कल" yesterday भी हो सकता है और tomorrow भी! क्या हिन्दी में शब्दों की कमी थी?
तमिल भाषी यह भी सोचते हैं कि हिन्दी में स, श, और ष, तीन अलग अक्षर की क्यों जरूरत पड गई?
और वैसे भी बिहार के लोग तो "श" का प्रयोग करते ही नहीं हैं! "मिश्राजी" को "मिसराजी" कहते हैं
और बंगाली लोग तो हर स को श बनाकर बोलते हैं। ऊपर से यह "ष" कहाँ से घुस आया?
Long live North - South differences!
शुभकामनाएं
GV