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Originally Posted by soni pushpa
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हूँ अभी मैं मस्ती में गीतों के बोलो में व्यस्त बस ,हु खुश ही खुश दोस्तों संग तब शायद हे इश्वर तुम फोन कर मुझे पूछोगे तब कहूँगी रुको मैं अब भी रस्ते में हूँ दोस्तों संग बिताई यादों में हूँ
और जब अनन्त का लम्बा सफ़र होगा ख़त्म और कहूँगी सबसे पहले तुझे मेरे इश्वर बना लो तुम भी कुछ दोस्त एइसे की दोबारा दुनिया बनाने की जरुरत ही तुमको न पड़े
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बहुत सुंदर उद्गार. जीवन में बहुत से मरहले ऐसे भी आते हैं जब उसका चिंतन आध्यात्मिक या दार्शनिक होने लगता है. यह रचना भी उन्हीं क्षणों की देन है. जीवन में जो मिला जैसा मिला उसे ईश्वर की कृपा समझ कर उसका उत्सव मनाना बहुत बड़ी बात है. और उसके ऊपर ईश्वर को दोस्ती का निमंत्रण देना तो बिलकुल अनोखा ख़याल है. एक श्रेष्ठ कविता शेयर करने के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद, बहन.