Re: किस्सा तीन बहनों का
किस्सा तीन बहनों का
जब वह घोड़े पर चढ़ी तो बहमन ने चाहा कि पिंजड़ा आदि सारी चीजें अपने घोड़े पर लादे ताकि परीजाद का बोझ हलका हो। परीजाद ने कहा, चिड़िया की मालिक तो मैं हूँ, वह मेरे पास रहेगी। तुम लोग चाहो तो एक टहनी और दूसरा पानी की सुराही ले लो। अतएव बहमन ने टहनी और परवेज ने सुनहरे पानी की सुराही ले ली। फिर अन्य पुनर्जीवित लोग भी अपने-अपने घोड़ों पर बैठे और सभी चलने को तैयार हुए क्योंकि काफी दूर तक सभी का एक ही रास्ता था।
परीजाद ने कहा, तुम लोगों में जो सर्वश्रेष्ठ हो वह इस समूह का नायक बन कर आगे चले। सभी लोगों ने एक स्वर में कहा, सुंदरी, तुम से श्रेष्ठ कौन होगा? तुम हमारी जीवनदात्री हो। तुम्हीं सबके आगे चलो। परीजाद शालीनता से बोली, मैं अवस्था में सब से छोटी हूँ और किसी प्रकार भी दल की नेत्री बनने के योग्य नहीं हूँ। किंतु तुम लोग विवश कर रहे हो तो तुम्हारे प्रति आभार प्रकट करते हुए मैं भी दल के आगे चलती हूँ।
यह दल आगे बढ़ा। सभी लोग उस सिद्ध के दर्शन करना चाहते थे जिसने सभी को राह बताई थी। किंतु जब यह दल उसकी कुटिया पर आया तो उसका कुछ पता न पाया। मालूम नहीं वह काल-कवलित हो गया था या वहाँ पर तीन अद्भुत वस्तुओं की राह बताने के लिए ही मौजूद था और उन चीजों के न रहने पर वहाँ से गायब हो गया।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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