Re: किस्सा तीन बहनों का
किस्सा तीन बहनों का
कुछ दिनों तक आराम करने के बाद बहमन और परवेज ने पहले की तरह मृगया का मनोरंजन शुरू किया। वे अपने घिरे हुए जंगल के बाहर भी शिकार खेलने के लिए जाने लगे। एक रोज वे शहर से लगभग एक कोस की दूरी पर स्थित एक जंगल में शिकार खेल रहे थे। संयोग से उसी समय बादशाह भी वहाँ शिकार खेलने आया हुआ था। इन दोनों ने यह देख कर चाहा कि शाही फौजियों की निगाह बचा कर निकल जाएँ क्योंकि वह जंगल शाही शिकारगाह था। लेकिन बच निकलने के चक्कर में वे ऐसे रास्ते पर पड़ गए जहाँ से हो कर बादशाह की सवारी आ रही थी। यह देख कर उन्होंने चाहा कि बगल के किसी रास्ते से निकल जाएँ। यह संभव न हुआ और वे बादशाह के सामने पड़ गए।
मजबूरी में वे घोड़ों से उतरे और बादशाह को झुक कर सलाम करने लगे। पहले बादशाह ने समझा कि वे उसके सामंतों में से हैं और देखने को ठहर गया कि कौन हैं। उसने उन्हें उठने की आज्ञा दी। वे उठे और सिर झुका कर खड़े हो गए। बादशाह उनकी सूरतें देख कर ठगा-सा रह गया। फिर उसने उनका नाम और निवास स्थान पूछा। बहमन ने हाथ जोड़ कर कहा, हुजूर, हम लोग आपके भूतपूर्व बागों के दारोगा के पुत्र हैं। हमारे पिता नहीं रहे। हम जंगल के किनारे उस महल में रहते हैं जो उन्होंने आपसे अनुमति ले कर बनवाया था। हमें वे इसीलिए अच्छे वातवरण में रखते थे कि बड़े हो कर हम आपकी सेवा करें।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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