Re: डार्क सेंट की पाठशाला
अपनी हीनभावना निकाल फेंकें
किसी भी इंसान को दूसरे उतना धोखा नहीं देते, जितना वह खुद को देता है। किसी भी इंसान की अवनति के लिए दूसरे उतने उत्तरदायी नहीं होते, जितना वह खुद होता है। कुछ विफलताओं के बाद व्यक्ति के मन में हीन भाव आ जाता है और वह कायर हो जाता है। वह इस बात पर चिंतन नहीं कर पाता कि जीत और हार तो जीवन का हिस्सा है। वह उन कारणों को नहीं ढूंढ पाता, जिनकी वजह से उसके प्रयास विफल हुए हैं। वह खुद को भाग्यहीन मान लेता है। उसे लगता है कि संसार में उसका कोई मूल्य नहीं है। वह यह मान लेता है कि दूसरे उससे बेहतर हैं और वह आम रहने के लिए पैदा हुआ है। चाहे आपके साथ जो घटा हो, आपने कितना भी बुरा जीवन क्यों न जिया हो, आपके जीवन का अभी अंत नहीं हुआ है। आपका मूल्य खत्म नहीं हुआ है। किसी को भी हक नहीं कि किसी अनुपयोगी वस्तु की तरह आपको कबाड़ में डाल दे। आप फिर खड़े हो सकते हैं। आप फिर मंजिल को पा सकते हैं। महत्व आपके अतीत का नहीं है। महत्व है, तो आपके भविष्य के प्रति आपकी सोच का। ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं, जिसमें दुनिया ने किसी शख्स को चुका हुआ मान लिया था, उनका तिरस्कार होने लगा था, लेकिन उनके हौसलों की उड़ान ने उन्हें फिर से खड़ा कर दिया। वे सारे लोग, जो कल तक उनका अपमान करते थे, आज फिर उनके प्रशंसक हैं और जय जयकार कर रहे हैं। रात चाहे कितनी भी गहरी हो, सूर्य को हमेशा के लिए नहीं ढक सकती। सोना चाहे कितना भी धूल से सना हो, सोना ही रहता है। यदि आप अपनी इच्छा से एक खराब और मजबूर जिंदगी चुन रहे हैं, तो कोई आपकी मदद नहीं कर सकता, लेकिन यदि आप बीती विफलताओं की वजह से डरे हुए हैं, तो उठिए। यदि आप किसी कारण से हीनभावना से घिरे हैं, तो अपने मन के अंदर उतरिए। आप पाएंगे कि बहुत से कार्य हैं, जिन्हें आप बहुत अच्छे से कर सकते हैं। आप अपने आसपास देखिए। आपको बहुत से ऐसे लोग मिलेंगे, जिनमें आपके जैसी योग्यता नहीं है, फिर भी वे खुशहाल हैं। अपनी हीनभावना निकाल फेंकें । यदि दुनिया में दूसरे लोग सुखी रह सकते हैं, तो आप भी रह सकते हैं।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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