Re: क्विज़ टाइम / किशोर कुमार
किशोर कुमार की अदाकारी हमें हंसाती थी। उनके मजेदार गीत कदमों में थिरकन भी लाते थे और चेहरे पर हंसी भी। लेकिन वो जोकर नहीं थे। मसखरे भी नहीं थे। पर्दे पर वो हंसाते गए, अपनी आवाज के जादू से गुदगुदाते गए तो हम यही समझ बैठे की किशोर कुमार की असल जिंदगी भी ऐसी ही मजेदार होगी और थी भी। कम से कम दूर से देखकर तो ऐसी ही लगती थी। उनका चुटिला अंदाज, मस्ती, उनकी अजीबोगरीब हरकतों के किस्से सुनकर यही लगा कि किशोर दा जैसे पर्दे पर वैसे ही हकीकत में। लेकिन क्या आप जानते हैं कि सुरीले किशोर की अंदर गम के साज़ भी बजा करते थे। उनकी हंसी की खनक के पीछे दर्द भरी आह भी थी। जिस मायानगरी ने उन्हें सबकुछ दिया वही उन्हें काटने दौड़ती थी और उनके अंदर हमेशा मुंबई से भागने की तड़प बनी रहती थी। वो भागकर फिर से अपने शहर खंडवा जाना चाहते थे। ये शहर तो उन्हें कभी रास आया ही नहीं था।
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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