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Originally Posted by Pavitra
बेहतरीन लेख लिखा है आपने सोनी पुष्पा जी......कभी कभी सोचती हूँ कि सच में औरतों की क्या जिन्दगी है , मैं सभी औरतों के बारे में नहीं कह रही पर ज्यादातर औरतें आज भी एक दबी हुई , घुटन भरी जिन्दगी जीती हैं । महिलाओं से कुछ ज्यादा ही उम्मीदें रखता है ये समाज । कोई फर्क नहीं पडता कि आप कामकाजी हैं या घरेलू , आपके ऊपर ही सारी जिम्मेदारियाँ होती हैं , और उम्मीद की जाती है कि आप उफ तक ना करें और सारी जिम्मेदारियों को अच्छे से निभायें । समझती हूँ मैं कि उम्मीद भी उसी से की जाती है जिस पर भरोसा हो कि वो उन जिम्मेदारियों को निभा सकेगा । पर फिर भी जिम्मेदारियों के साथ कुछ अधिकार भी मिलने चाहिये जिससे उन जिम्मेदारियों को पूरा किया जा सके ।
हाल ही में एक विवादित डोक्युमेन्ट्री देखी , और देखने के बाद महसूस हुआ कि हम कभी सोच भी नहीं सकते कि ये समाज कितना नीचे जा चुका है । कोई भी महिला अगर इसे देखे तो शायद खुद ही बुर्का पहनना पसन्द करे या घूँघट में चले , और अगर वो ऐसा कर भी ले तब भी जरूरी नहीं है कि वो सुरक्षित रहेगी। हमारे समाज का एक बडा वर्ग इतनी निम्नतम सोच रखता है , जिसका शायद हम महिलाएँ कभी अन्दाजा भी नहीं लगा पाएँगी। अगर अशिक्षित वर्ग घटिया सोच वाला हो तब तो समझ आता है , ले
अन्त में बस इतना ही कहूँगी कि बेहतर है कि महिलाएँ अपने पैरों पर खडी हो जायें , कमा सकें , और शायद हमारी किस्मत में हमेशा चौकन्ना रहना ही लिखा है इसलिये किसी पर भी अन्धविश्वास ना करते हुए , सभी को जाँचें - परखें ......क्योंकि आप खुद ही खुद की बेहतर हिफाजत कर सकती हैं , किसी और से उम्मीद करना बेकार है।
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[QUOTE=Pavitra;549246][size="3"]बेहतरीन लेख लिखा है आपने सोनी पुष्पा जी......कभी कभी सोचती हूँ कि सच में औरतों की क्या जिन्दगी है , मैं सभी औरतों के बारे में नहीं कह रही पर ज्यादातर औरतें आज भी एक दबी हुई , घुटन भरी जिन्दगी जीती हैं । महिलाओं से कुछ ज्यादा ही उम्मीदें रखता है ये समाज । कोई फर्क नहीं पडता कि आप कामकाजी हैं या घरेलू , आपके ऊपर ही सारी जिम्मेदारियाँ होती हैं , और उम्मीद की जाती है कि आप उफ तक ना करें और सारी जिम्मेदारियों को अच्छे से निभायें । समझती हूँ मैं कि उम्मीद भी उसी से की जाती है जिस पर भरोसा हो कि वो उन जिम्मेदारियों को निभा सकेगा । पर फिर भी जिम्मेदारियों के साथ कुछ अधिकार भी मिलने चाहिये जिससे उन जिम्मेदारियों को पूरा किया जा सके ।
हाल ही में एक विवादित डोक्युमेन्ट्री देखी , और देखने के बाद महसूस हुआ कि हम कभी सोच भी नहीं सकते कि ये समाज कितना नीचे जा चुका है । कोई भी महिला अगर इसे देखे तो शायद खुद ही बुर्का पहनना पसन्द करे या घूँघट में चले , और अगर वो ऐसा कर भी ले तब भी जरूरी नहीं है कि वो सुरक्षित रहेगी। हमारे समाज का एक बडा वर्ग इतनी निम्नतम सोच रखता है ,
प्रिय पवित्रा जी सबसे पहले माफ़ी चाहूंगी देर से रिप्लाई के लिए और साथ ही आपका बहुत बहुत धन्यवाद की आपने अपने इतने सुलझे हुए विचार यहाँ रखे ... जी पवित्रा जी हमारे समाज की यही विडंबना है की पुरुष में एहंकार की अधिकता है जिस वजह से वो नारी का सम्मान और आदर नहीं कर पाते ..
अनपढ़ लोग नारी के साथ मारपीट करते है दारू पीकर सताते हैं और कई तरह के अत्याचार नारी सहती है किन्तु सिर्फ अनपढ़ ही नहीं पढ़े लिखे लोग कई एइसे देखे गए हैं जो नारी सम्मान की बात को समझते तक नहीं क्यूंकि उनका mane egoआड़े आता है.
purush सब जानते समझते हैं की एक महिला के बिना उनका जीवन अधुरा है फिर भी वे नारी को सम्मान नहीं दे पाते ..
आपने जो बुरका ओढ़ने वाली बात कही पवित्रा जी इससे मेरे मन में एक ख्याल आया की पुराने ज़माने में पर्दा प्रथा शायद हमारे पूर्वजो ने इसीलिए ही बनाई होगी, ताकि एइसे वहशियों से महिलाओं की रक्षा हो सके . किन्तु मै नहीं मानती की पर्दाप्रथा से महिलाएं सुरक्षित हो सकतीं है क्यूंकि सिर्फ चेहरा ढकने से स्त्री नहीं बच सकती. क्यूंकि मन का गंदापन उन कुछ पुरुषों के अन्दर होता है जो स्त्री को हीन समझते हैं.