Re: अघोषित आलसी का इकबालनामा
और इसी सब के इस चिटठा जगत के मित्रों से दूरी......... आलस्य भारी पड़ता है.... सभों और. आज सीट पर बैठे है तो देखते है सभी भई लोग कार्यशील हैं..... एक मुझ आघोषित आलसी को छोड़ कर ....कहाँ से शुरू करूँ...... किस ब्लॉग पर पहले जाऊ.... क्या क्या पढूं...... सभी तो मनपसंद है.... पोसिशन उसी सावन में गधे जैसी........... पुराने दिन याद आते हैं, ऐसे लगता है...... १ सप्ताह स्कूल नहीं गया........ होम वर्क बहुत रह गया है... कौन से सब्जेक्ट पहले कवर करूँ....... इसी उहापोह में कुछ भी नहीं करता था..... और बस सरजी के २ थप्पड़ का इन्तेज़ार रहता था...... वो पड़े और दिल को चैन मिले....... बुद्धि बहुत थी, कोई जरूरी नहीं है कापी भरना..... बस थप्पड़ से बचने के लिए ही तो भरता था..... दिल-दिमाग तो पढ़ाई से कोसों दूर रहता था....... राम जी, इतनी बुद्धि के साथ साथ थोड़ी सद्बुद्धि भी दे देते...... पर अब ऐसा नहीं है... पढ़े-लिखे विद्वान ब्लोगर भाइयों का साथ है, ..... जो पढ़ाई पूरी नहीं कर पाया आज इन्ही सब के बीच पूरी करने का प्रयत्न करता हूं.
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