Re: कहानी का रूपान्तरण
'पत्नी के विवाहेतर सम्बन्ध की जानकारी होने के बाद नानावटी ने आत्महत्या करने का प्रयत्न किया किन्तु सिल्विया के समझाने-बुझाने के बाद शान्त हो गया'-- यह 'नानावटी के मुकदमे' की कहानी का एक मुख्य अंश है। यह सुनने में जितना सरल लगता है, लिखने में उतना ही कठिन है। इस सारांश में निहित तथ्यों का समावेश करते हुए किसी उपन्यास का अध्याय, नाटक या फ़िल्म का दृश्य अथवा आकाशवाणी नाटक का दृश्य लिखकर देखिए तो आपको पता चलेगा कि यह दृश्य कहानी का सबसे जटिल और पेचीदा भाग है। कहानी के दृष्टिकोण से नानावटी द्वारा आत्महत्या का प्रयत्न करना एक ऐसे व्यक्ति के लिए स्वाभाविक घटना है जो अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करता हो। समझा-बुझाकर आत्महत्या के प्रयत्न को विफल करना एक अत्यन्त जटिल भावनात्मक (Emotional) प्रक्रिया (Process) होने के कारण एक टेढ़ी खीर है। शायद इसीलिए पटकथाकारों ने 'नानावटी के मुकदमे' की कहानी के इस प्रमुख अंश का विस्तार करने के स्थान पर जड़ से काटकर हटा दिया और अपने हिसाब से 'नानावटी के मुकदमे' की कहानी के केन्द्रीय विचार में परिवर्तन करके 'नानावटी के मुकदमे' की कहानी का ठप्पा लगाकर दर्शकों के सम्मुख पेश कर दिया, जबकि सत्य यह है कि सत्यकथा होने की दशा में केन्द्रीय विचार में परिवर्तन करना नियम-विरुद्ध है और 'विवाहेतर सम्बन्ध होने मात्र से' किसी कहानी को 'नानावटी के मुकदमे' की कहानी कहना नि:संदेह हास्यास्पद है।
Last edited by Rajat Vynar; 18-04-2017 at 01:22 PM.
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