10-11-2017, 10:09 PM
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Re: पता नहीं बेटा
फ़िल्म 'पद्मावती' का विरोध
पिता जी!
हाँ, बेटा?
हमारे देश में फ़िल्में रिलीज़ होने से पहले अक्सर फ़साद खड़े हो जाते हैं. ऐसा क्यों? और कभी कभी तो रिलीज़ होने के बाद भी विवाद शुरू हो जाते हैं.
बेटा, बात यह है कि हर किसी को अपनी बात कहने का हक है. अगर किसी को फ़िल्म में दिखाई गई किसी बात से शिकायत होती है तो उसकी बात सुनी जानी चाहिए. यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि किसी के विश्वास या धार्मिक आस्था को चोट न पहुंचे. किसी की भावनाएं आहत न हों.
लेकिन यह समझ में नहीं आता कि फ़िल्म ‘पद्मावती’ का विरोध क्यों हो रहा है? महारानी पद्मावती का तो कोई ऐतिहासिक उल्लेख भी नहीं मिलता. सिर्फ जायसी द्वारा रचे गए सूफ़ी विचारधारा के महाकाव्य ‘पद्मावत’ में उसकी कहानी लिखी गई है. उसे ले कर राजपूत सेना और करणी सेना और कुछ अन्य वर्ग इस रानी के जीवन पर बनने वाली फ़िल्म का विरोध कर रहे हैं. वो कहते हैं कि फिल्म में रानी का किरदार गलत तरीके से चित्रित किया गया है और अलाउद्दीन खिलजी के किरदार को जबरदस्ती महिमामंडित किया गया है. लोग कहते हैं कि पहले फ़िल्म हमें दिखाओ नहीं तो हम फिल्म को रिलीज़ ही नहीं होने देंगे. सिनेमाघरों में आग लगा देंगे. क्या यह दादागिरी नहीं है?
बेटा, चाहे कुछ भी हो पद्मिनी की कहानी राजस्थान के जनमानस में रची बसी है. उसकी एक छवि लोगों में बनी हुई है जो राजपूती गौरव तथा आन बान व शान के अनुरूप है. लोग नहीं चाहते की फिल्म में ऐसा कुछ हो जिससे रानी की इस परंपरागत छवि पर आंच आये.
तो पिता जी, क्या हर फिल्म को दिखाए जाने या न दिखाए जाने का फ़ैसला सड़कों पर किया जायेगा? हिंसा, आगजनी या गुंडों द्वारा मार-पीट से इन मसलों का हल निकाला जायेगा? देश में क़ानून भी तो है. सेंसर बोर्ड भी मौजूद है. अदालतें भी हैं. फिर यह अराजकता क्यों? इस साल जनवरी में भंसाली से जयपुर में हुई मारामारी किस ओर इशारा करती है?
पता नहीं बेटा!
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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