और आज की हमारी शख्सियत हैं (15 फ़रवरी)
नरेश मेहता /Naresh Mehta
ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता तथा साहित्य अकादमी सहित अन्यान्य विशिष्ठ संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं समादृत कवि, कथाकार, निबंधकार, नाट्य लेखक नरेश मेहता का जन्म 15 फ़रवरी 1922 को शाजापुर (म.प्र) में हुआ था. बनारस से एम ए के बाद आल इंडिया रेडियो, इलाहाबाद में काम किया. चौथी दुनिया पत्र का संपादन भी किया. वे तार सप्तक (द्वितीय) में भी शामिल थे.
शबरी खंड काव्य की भूमिका में वे लिखते हैं-
‘जिस प्रकार राजनीतिक या आर्थिक समता के बिना धर्म का ‘सोऽहं’ भाव निरा पाखण्ड है उसी प्रकार बिना धर्म या नैतिक मूल्यों के राजनीतिक या आर्थिक समानता निरी क्रूर, पाशविक या अवसरवादिता है .... सामाजिक मूढ़ता, परिवेशगत जड़ता तथा अपने युग के साथ संलापहीनता की स्थिति में व्यक्ति केवल अपने को ही जागृत कर सकता है.अपने को ही संबोधित कर सकता है. इसी संघर्ष के माध्यम से ‘स्व’ ‘पर’ हो सकता है; व्यक्ति, समाज बन सकता है.’
इनकी प्रमुख रचनायें इस प्रकार हैं:
काव्य रचनाएँ: वनपाखी, उत्सवा, अरण्या, प्रवाद-पर्व आदि (संग्रह) शबरी, संशय की एक रात, महा-प्रस्थान (खण्ड काव्य).
उपन्यास: डूबते मस्तूल, यह पथबंधु था, उत्तरकथा, धूमकेतु: श्रुति, पुरुष, प्रतिश्रुति, नदी यशस्वी है.
कहानी संग्रह: जलसाघर