Re: कहानी: मिट्टी का माधव
आपने ठीक कहा, बहन पुष्पा जी. विभाजन की त्रासदी झेल चुकी पीढ़ी इस पीड़ा को कभी भुला नहीं पाई. आपको जान कर हैरानी होगी कि स्वयं मेरे दादाजी व दादी ट्रेन में आते समय क़त्ल कर दिए गए थे. यह 1947 की बात है जब साम्प्रदायिक दंगे अपने चरम पर थे. ट्रेनों की ट्रेन इस अमानवीय कत्लेआम की मूक गवाह बन रही थी. कत्लेआम होने वाले लोगों में हिन्दू भी थे और मुसलमान भी. स्त्रियाँ भी थीं और पुरुष भी, छोटे भी थे और बड़े भी.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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