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Originally Posted by dineshpareek067
स्कूल की छुट्टी होने के बाद बड़ी हिम्मत जुटा कर तुमसे कहा- ज्योति, आज मेरे साथ मेरे रास्ते घर चलो ना? हांलाकि हम दोस्त थे पर इतने भी अच्छे नहीं कि तू मुझ पर ट्रस्ट कर लेती...'मैं नी आरी' तूने गुस्से से कहा...'प्लीज चलो ना तुम्हे कुछ सरप्राइज देना है'...मैंने बहुत अपेक्षा से कहा...ये सुन के तू और भड़क गयी और जाने लगी क्यूंकि क्लास में मेरी इमेज बैकैत और लोफर लड़कों की थी...
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गोलगप्पे के सेन्टीमेंट पर तो नहीं, मगर खराब इमेज़ के सेन्टीमेन्ट पर वर्ष 2000 के आसपास एक तमिल फीचर फिल्म 'तुल्लाद मनमुम तुल्लुम' (न धड़कने वाला दिल भी धड़केगा) आ चुकी है और सुपरहिट रही थी।