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rajnish manga
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Default Re: साहित्यकारों के विनोद प्रसंग

शरद जोशी और कन्हैयालाल नंदन

यह 1975 या 1976 की पहली अप्रेल की शाम की बात है। अवसर था, उज्जैन में आयोजित टेपा सम्मेलन।स्वर्गीय कन्हैयालालजी नन्दन प्रमुख पात्र थे। उनका अभिनन्दन पत्र पढ़ने का जिम्मा शरद भाई का था।

शाम को टेपा सम्मेलन शुरु हुआ। डॉक्टर शिव शर्मा टेपा सम्मेलन के कर्ता-धर्ता थे। आज भी हैं। मालवी परम्परा औरटेपा शैलीमें मंचासीन विभूतियों का स्वागत किया। रंग-बिरंगे अंगरखे, विचित्र आकार-प्रकार की टोपियाँ और उतनी ही विचित्र सामग्री से बनी मालाएँ। समूचा वातावरण इन्द्रधनुषी और तालियों-किलकारियों-ठहाकों से ओतप्रोत।

एक के बाद एक विभूतियों का अभिनन्दन शुरुहुआ। और अन्ततः बारी आई नन्दनजी की। अपने लिखे अभिनन्दन-पत्र के पन्ने हाथमें लिए शरद भाई माइक पर आए। समूचा सभागार यह देखने-जानने को उतावला बनाहुआ था कि देखें! शरद भाई दोस्ती और प्रसंग, दोनों का निभाव किस तरह करतेहैं।

हाथों में थामे पन्नों को दो-एक बारऊपर-नीचे करते हुए शरद भाई ने पूरे सभागार पर नजरें दौड़ाई। फिर पलट करमंचासीन विभूतियों को देखा। उनकी नजरें, नन्दनजी पर कुछ क्षण टिकी रहीं।फिर माइक की ओर गर्दन घुमाई, गला खँखारा और बोलना शुरु किया।

अब मुझे सब कुछ शब्दशः तो याद नहीं किन्तुभूमिका बाँधने के बाद शरद भाई कुछ ऐसा बोले - हमारे यहाँ कई तरह के नन्दनपाए जाते हैं। साहित्य में कन्हैयालाल नन्दन। लोक-जीवन में वैशाख नन्दन।एक और किसम के नन्दन पाए जाते हैं जिसे च में बड़े ऊ की मात्रा, त में छोटीइ की मात्रा और य में आ की मात्रा लगाकर नन्दन कहा जाता है।कह कर शरदभाई साँस लेने को रुकते, उससे पहले ही समूचा सभागार तालियों और ठहाकों सेगूँज उठा और देर तक गूँजता रहा।

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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
(Let noble thoughts come to us from every side)
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